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Hindi gyan vikas

By: Material type: TextTextPublication details: Jaipur; Bohra Prakashan; 1989Description: 216 pISBN:
  • 8185234086
DDC classification:
  • H 491.43 PAN
Summary: संक्षेपण से अभिप्राय है किसी वक्तव्य, विवरण, लेख, पत्र, निर्देश आदि को इस प्रकार संक्षिप्त रूप में प्रस्तुत करना कि उसके अप्रासंगिक वर्णन दूर हो जाएँ और मूल भाव स्पष्ट हो जाय । संक्षेपण भी एक शैली है जिसके माध्यम से मूल अवतरण के वे अंश हटा दिये जाते हैं जो अवतरण के मूलभाव को अधिक स्पष्ट करने के उद्देश्य से दिये गये होते हैं और जिनके कारण मूलभाव बहुत अधिक शब्दों में, शब्द विस्तार में उलझ जाता है। ऐसे शब्दों, वर्णनों से संक्षेपण कर्त्ता मूलभाव समझने में सहायता लेता है और फिर वह अपने शब्दों में मूलभाव को संक्षिप्त रूप में व्यक्त करता है। इस प्रकार संक्षेपण में मूलभाव ही मुख्य होता है उसी को समझने में मूलअवतरण के अप्रासंगिक वर्णन, उदा हरण, अन्तर्कथा, अलंकार, दृष्टान्त आदि सहायक रहे होते हैं। उन सब बातों के विस्तार का उपयोग संक्षेपण कर्ता के लिए है। संक्षेपण के क्षेत्र में उन्हें नहीं रखा जा सकता । इस प्रकार संक्षेपण एक स्वतः पूर्ण रचना है तभी तो उसे पढ़ लेने के बाद मूल अवतरण को पढ़ने की आवश्यकता नहीं रहती । संक्षेपण एक ऐसी क्रिया है जिसमें मूलभाव तो प्रस्तुत किया जाता है ही, उसमें बात को संक्षेप में प्रस्तुत करना होता है। इसके साथ ही यह भी जरूरी है कि संक्षेप में जो कुछ कहा जाता, प्रस्तुत किया जाता है, वह स्वतः पूर्ण, व्यवस्थित, सुगठित होता है। यह विखरा बुखरा, अपूर्ण नहीं लगता। इस प्रकार का संक्षिप्तीकरण या संक्षेपण करने के लिए अभ्यास की जरूरत पड़ती है। यह कला अभ्यास से आती है।
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संक्षेपण से अभिप्राय है किसी वक्तव्य, विवरण, लेख, पत्र, निर्देश आदि को इस प्रकार संक्षिप्त रूप में प्रस्तुत करना कि उसके अप्रासंगिक वर्णन दूर हो जाएँ और मूल भाव स्पष्ट हो जाय । संक्षेपण भी एक शैली है जिसके माध्यम से मूल अवतरण के वे अंश हटा दिये जाते हैं जो अवतरण के मूलभाव को अधिक स्पष्ट करने के उद्देश्य से दिये गये होते हैं और जिनके कारण मूलभाव बहुत अधिक शब्दों में, शब्द विस्तार में उलझ जाता है। ऐसे शब्दों, वर्णनों से संक्षेपण कर्त्ता मूलभाव समझने में सहायता लेता है और फिर वह अपने शब्दों में मूलभाव को संक्षिप्त रूप में व्यक्त करता है। इस प्रकार संक्षेपण में मूलभाव ही मुख्य होता है उसी को समझने में मूलअवतरण के अप्रासंगिक वर्णन, उदा हरण, अन्तर्कथा, अलंकार, दृष्टान्त आदि सहायक रहे होते हैं। उन सब बातों के विस्तार का उपयोग संक्षेपण कर्ता के लिए है। संक्षेपण के क्षेत्र में उन्हें नहीं रखा जा सकता । इस प्रकार संक्षेपण एक स्वतः पूर्ण रचना है तभी तो उसे पढ़ लेने के बाद मूल अवतरण को पढ़ने की आवश्यकता नहीं रहती ।
संक्षेपण एक ऐसी क्रिया है जिसमें मूलभाव तो प्रस्तुत किया जाता है ही, उसमें बात को संक्षेप में प्रस्तुत करना होता है। इसके साथ ही यह भी जरूरी है कि संक्षेप में जो कुछ कहा जाता, प्रस्तुत किया जाता है, वह स्वतः पूर्ण, व्यवस्थित, सुगठित होता है। यह विखरा बुखरा, अपूर्ण नहीं लगता। इस प्रकार का संक्षिप्तीकरण या संक्षेपण करने के लिए अभ्यास की जरूरत पड़ती है। यह कला अभ्यास से आती है।

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