Jainacharyo ka sanskrit vyakran ko yogdan
Material type:
- 8185184194
- H 491.25 PRA
Item type | Current library | Call number | Status | Date due | Barcode | Item holds |
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Gandhi Smriti Library | H 491.25 PRA (Browse shelf(Opens below)) | Available | 51170 |
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'जंनाचायों का संस्कृत व्याकरण को योगदान' शीर्षक के अंतर्गत संस्कृत व्याकरण को समृद्ध बनाने में जैन आचार्यों के योगदान को प्रस्तुत करने का एक प्रयास किया गया है।
सभी जैन व्याकरण ग्रन्थों की सामान्य विशेषता यह है कि इन व्याकरण ग्रन्थों में कातन्त्र व्याकरण के समान वैदिक प्रक्रिया संबंधी नियमों का अभाव रहा है। ऐसा प्रतीत होता है कि साधारण पाठकों की सुविधा को दृष्टि गत रखते हुए जैन वैयाकरणों ने अष्टाध्यायी की अपेक्षा सरल एवं स्पष्ट व्याकरण-ग्रन्थों की रचना की। प्रकृत व्याकरण-ग्रन्थों में शब्दसिद्धि की प्रक्रिया में सरलता, संक्षिप्तता तथा स्पष्टता की दृष्टि से अनेक शब्द महत्त्व पूर्ण हैं, जिनसे प्रक्रियाविधि को तत्तत् अध्याय में स्पष्ट किया गया है। जैन वैयाकरणों ने अपने से पूर्ववर्ती वैया करणों की अपेक्षा ऐसे अनेक नवीन शब्दों की भी सिद्धि की है, जो कि अपने समय की आवश्यकता की दृष्टि से महत्वपूर्ण थे। प्रकृत व्याकरण-ग्रन्थों में जैन धर्म से संबंधित तथ्य ही मुख्य रूप से उदाहरणों के आधार रहे हैं । उक्त जैन व्याकरण ग्रन्थों में प्रयुक्त तद्धित एवं कृत प्रत्ययों में से कुछ प्रत्यय अनुबन्ध आदि की दृष्टि से अपेक्षाकृत भिन्न हैं, जिनकी सूची तत्तत् अध्याय में दी गई है। सभी व्याकरण प्रन्थों के निष्कर्ष रूप मे कहा जा सकता है कि जैन वैयाकरणों का संस्कृत व्याकरण को संक्षिप्त, स्पष्ट एवं पूर्ण बनाने में अद्वितीय प्रयास रहा है।
संस्कृत-व्याकरण ग्रन्थों के अध्ययन की दृष्टि से जैन व्याकरण ग्रंथों के प्रति उदासीनता के निवारण में प्रस्तुत प्रयास सहायक होगा तथा जैन व्याकरण-ग्रन्थों के संबंध में उपयोगी सामग्री दे सकेगा ऐसी आशा है।
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