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Bharat ka sambidhan

By: Material type: TextTextPublication details: Jaipur Bohra prakeshan 1990Description: 386 pSubject(s): DDC classification:
  • H 342.029 NAG
Summary: प्रस्तुत पुस्तक में 1600 ई. से लेकर 1947 ई. तक के संवैधानिक विकास का इतिहास प्रामा णिक ग्रन्थों को आधार बनाकर आलोचनात्मक दृष्टिकोण से लिखा गया है । इसके अतिरिक्त इसमें यह भी स्पष्ट करने का प्रयत्न किया गया है कि राष्ट्रीय आन्दोलन की गतिविधियों एवं प्रतिक्रियाओं ने किस प्रकार से विधान के विकास में सहयोग दिया तथा वैधानिक विकास ने राष्ट्रीय आन्दोलन को कैसे प्रभावित किया पुस्तक में घटनाओं का आलोचनात्मक दृष्टिकोण से वैज्ञानिक विश्लेषण किया गया है । इसमें प्राचीन तथ्यों को नवीन शोध के प्रकाश में नवीन दृष्टिकोण के अनुसार निष्पक्ष ढंग से प्रस्तुत किया गया है । इस दृष्टि से यह प्रथम एवं एकमात्र कृति है । इतिहास की अनेक लोकप्रिय एवं बहु-प्रशंसित पुस्तकों के लेखक डॉ एस. एल. नागोरी ने पुस्तक लेखन में वैज्ञानिक पद्धति का सहारा लिया है । परन्तु भाषा सर्वत्र सरल एवं शैली बोधगम्य ही रखी गई है, ताकि विद्यार्थी एवं पाठकगरण विषय की मौलिकता को आसानी से समझ सकें । यह पुस्तक आई सी. एस. एवं प्रार. ए. एस. जैसी प्रतियोगी परीक्षाओं में बैठने वाले विद्यार्थियों के लिये सर्वश्रेष्ठ पुस्तक है । प्रस्तुत पुस्तक विद्यार्थियों एवं इतिहास के जिज्ञासु पाठकों को संवैधानिक विकास को समझने के लिये विशेष रूप से उपयोगी सिद्ध होती । इतना ही नहीं, अब तक किये गये प्रयासों की श्रृंखला में एक विशिष्ट स्थान प्राप्त कर सकेगी, ऐसी हमारी धारणा है ।
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प्रस्तुत पुस्तक में 1600 ई. से लेकर 1947 ई. तक के संवैधानिक विकास का इतिहास प्रामा णिक ग्रन्थों को आधार बनाकर आलोचनात्मक दृष्टिकोण से लिखा गया है । इसके अतिरिक्त इसमें यह भी स्पष्ट करने का प्रयत्न किया गया है कि राष्ट्रीय आन्दोलन की गतिविधियों एवं प्रतिक्रियाओं ने किस प्रकार से विधान के विकास में सहयोग दिया तथा वैधानिक विकास ने राष्ट्रीय आन्दोलन को कैसे प्रभावित किया

पुस्तक में घटनाओं का आलोचनात्मक दृष्टिकोण से वैज्ञानिक विश्लेषण किया गया है । इसमें प्राचीन तथ्यों को नवीन शोध के प्रकाश में नवीन दृष्टिकोण के अनुसार निष्पक्ष ढंग से प्रस्तुत किया गया है । इस दृष्टि से यह प्रथम एवं एकमात्र कृति है ।

इतिहास की अनेक लोकप्रिय एवं बहु-प्रशंसित पुस्तकों के लेखक डॉ एस. एल. नागोरी ने पुस्तक लेखन में वैज्ञानिक पद्धति का सहारा लिया है । परन्तु भाषा सर्वत्र सरल एवं शैली बोधगम्य ही रखी गई है, ताकि विद्यार्थी एवं पाठकगरण विषय की मौलिकता को आसानी से समझ सकें ।

यह पुस्तक आई सी. एस. एवं प्रार. ए. एस. जैसी प्रतियोगी परीक्षाओं में बैठने वाले विद्यार्थियों के लिये सर्वश्रेष्ठ पुस्तक है ।

प्रस्तुत पुस्तक विद्यार्थियों एवं इतिहास के जिज्ञासु पाठकों को संवैधानिक विकास को समझने के लिये विशेष रूप से उपयोगी सिद्ध होती । इतना ही नहीं, अब तक किये गये प्रयासों की श्रृंखला में एक विशिष्ट स्थान प्राप्त कर सकेगी, ऐसी हमारी धारणा है ।

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