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Bhartiya puralipi

By: Material type: TextTextPublication details: Allahabad; Lokbharti Prakashan; 1978Description: 224 pDDC classification:
  • H 491.1 PAN
Summary: पुरालिपि शास्त्र बड़ा ही रोचक विषय है। यह निषि के विकास का अध्ययन सम्मुख रखता है श्री डब्ल्यू० जी० बुहलर और महामहोपाध्याय पं० गौरीशंकर होराचन्द ओझा के बाद पुरालिपि के क्षेत्र में अनेक महत्त्वपूर्ण खोज हुए हैं। मोहनजोदड़ो और हड़ की खुदाइयों के बाद इस क्षेत्र में क्रांतिकारी और नयी स्था पनाएँ हुई है। इन स्थानों से प्राप्त सामग्रियों से भारतीय मेन मला की प्राचीनता और उसको उत्पत्ति के सम्बन्ध में बड़ा विवाद उठ खड़ा हुआ है। इस हालत में भारतीय पुरा लिपि पर एक ऐसी पुस्तक को बडी उपयोगिता है। इस पुस्तक ने पुरानिधि क्षेत्र के तीस वर्षों का व्यवधान पाटने का काम किया है। प्रस्तुत पुस्तक में प्राचीन काल से सन् १२००० भारतीय वनमा का इतिहास प्रस्तुत है। विषय को सुगम बनाने के लिए क्रमबद्ध प्रकरणों में उसका विवेचन प्रस्तुत है । अंत मे आवश्यक सारथियों भी दी गयी है। राम-के भावी गो और अनुमपि पाठकों के लिए यह विशेष उपयोगी है।
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पुरालिपि शास्त्र बड़ा ही रोचक विषय है। यह निषि के विकास का अध्ययन सम्मुख रखता है
श्री डब्ल्यू० जी० बुहलर और महामहोपाध्याय पं० गौरीशंकर होराचन्द ओझा के बाद पुरालिपि के क्षेत्र में अनेक महत्त्वपूर्ण खोज हुए हैं। मोहनजोदड़ो और हड़ की खुदाइयों के बाद इस क्षेत्र में क्रांतिकारी और नयी स्था पनाएँ हुई है। इन स्थानों से प्राप्त सामग्रियों से भारतीय मेन मला की प्राचीनता और उसको उत्पत्ति के सम्बन्ध में बड़ा विवाद उठ खड़ा हुआ है। इस हालत में भारतीय पुरा लिपि पर एक ऐसी पुस्तक को बडी उपयोगिता है। इस पुस्तक ने पुरानिधि क्षेत्र के तीस वर्षों का व्यवधान पाटने का काम किया है।
प्रस्तुत पुस्तक में प्राचीन काल से सन् १२००० भारतीय वनमा का इतिहास प्रस्तुत है। विषय को सुगम बनाने के लिए क्रमबद्ध प्रकरणों में उसका विवेचन प्रस्तुत है । अंत मे आवश्यक सारथियों भी दी गयी है। राम-के भावी गो और अनुमपि पाठकों के लिए यह विशेष उपयोगी है।

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