Main tat par hun v.1972
Material type:
- H 491.431 BHA
Item type | Current library | Call number | Status | Date due | Barcode | Item holds |
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Gandhi Smriti Library | H 491.431 BHA (Browse shelf(Opens below)) | Available | 47601 |
उनींदी अभी जागी हुई या इस गतिमती जिन्दगी के किनारे एक पेड़ न जाने कब से बड़ा हुआ है। जिन्दगी जो नदी -सी ही सनातन है, अपने में यह रही है। पेड़ शायद फूलों का है, जो जब फूलता रहता है। कब antare नदी और पेड़ जुड़ जाते है नहीं लगता; अचानक लोग नदी को पहचान पेड़ से करने लगते हैं और पेड़ को पहचान नदी द्वारा नदो सूख कर भी अन्तःस्रोतस्विनी है, जो फिर बहेगी ही पुष्पित न होकर भी फूलों का है, कभी फूलेगा ही। पेड़ा अपुष्पन सृष्टि की इति नहीं है और पेट का विकसन सम्पूर्ण सृष्टि नहीं है। कहने का अभिप्राय सिर्फ इतना हो है कि जो कुछ दिखाई पड़ता है, यही सम्पूर्ण नहीं है।
कवि अपने आप को अभिव्यक्त करता है और आत्मप्राप्ति का सुख पा लेता है। उस की यह आत्मप्राप्ति केवल अपनी नहीं रह जाती है-नायक या पाठक का सुख भी हो जाती है, लेकिन केवल कलम के जरिये अभि व्यक्त हो जाना हो रचना नहीं है-जो कुछ उस के आसपास को हवाओं में गुजरता है, दिशाओं से जाता है, आसमान या बादलको छायाओं में दिखाई देता है, पर्वत-नदी-मैदानों में सुनाई देता है—उन सब के जवाब में उस के भीतर जो प्रक्रिया होती है, यह सब रचना है, सब कविता है।
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