Shiksha ke manovegyanik aadhar v.1971
Material type:
- H 370.15 DAV
Item type | Current library | Call number | Status | Date due | Barcode | Item holds |
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Gandhi Smriti Library | H 370.15 DAV (Browse shelf(Opens below)) | Available | 46669 |
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H 370.15 BHA Shiksha me manovigyan | H 370.15 CHA Bharat hetu shiksha-darshan | H 370.15 DAS Shiksha manovigyan | H 370.15 DAV Shiksha ke manovegyanik aadhar | H 370.15 DHO Shiksha manovigyan | H 370.15 KAB Bhauaayami shaikshik chintan: shiksha ke vyapak sandarbh | H 370.15 MAT Shiksha manovigyan |
भारतीय भाषाओं को उच्च शिक्षा का माध्यम बनाने की राष्ट्रीय नीति को शीघ्र क्रियान्वित करने के लिए सन् १९६८ में भारत सरकार ने एक बृहत् योजना का सूत्रपात किया था जिसके अन्तर्गत विभिन्न प्रदेशों में ग्रन्थ अकादमियों की स्थापना कर उनके माध्यम से विश्वविद्यालयीय शिखर पर विभिन्न विषयों में महत्वपूर्ण एवं उपयोगी पुस्तकों के मौलिक लेखन और अन्य भाषाओं से ग्रन्थानुवाद कराने का कार्यक्रम स्वीकृत हुआ था। भारत सरकार के शिक्षा एवं युवक सेवा मंत्रालय ने चतुर्थ पंचवर्षीय योजना के घाव इसके लिए मत-प्रतिशत अनुदान देना स्वीकार किया । राजस्थान हिन्दी ग्रन्थ अकादमी की स्थापना भी इसी उद्देश्य की पूर्ति एवं योजना को क्रियान्वित करने के लिए की गयी थी। प्रस्तुत ग्रन्थ "शिक्षा के मनो वैज्ञानिक आधार" का प्रकाशन भी इसी योजना के अन्तर्गत हुआ है ।
आधुनिक शिक्षाशास्त्रियों ने गुष्ठु शिक्षा-पद्धति के लिए अनेक आधार प्रस्तुत किये है। शिक्षा का उद्देश्य वस्तुतः केवल 'साक्षरता' या 'गंजरिक उपाधियां प्राप्त करना ही नहीं है। भारतीय मनीषियों ने 'विद्या' की महत्ता बताते हुए इसे मनुष्य । के जीवन, व्यक्तित्व और का हेतु गिना है। शिक्षा के विभिन्न आधारों में एक महत्वपूर्ण आधार उसका 'मनोवैज्ञानिक' स्वरूप है। आधुनिक शिक्षाशास्त्रियों और मनोविज्ञान वेत्ताओं ने इस ओर महत्वपूर्ण स्थापनाएं प्रस्तुत की हैं। इटली के प्रसिद्ध विद्वान गुईजोट का कथन है कि शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य “मनुष्य के समग्र व्यक्तित्व का विकास है" अर्थात् "जहां एक विद्यालय खुलता है वहीं एक कारावास भी बन्द होता है ।" डा० इन्दु दवे द्वारा लिखित प्रस्तुत ग्रन्थ शिक्षा के मनोवैज्ञानिक आधारों का सम्यक विवेचन करता है। डा० श्रीमती दवे भारत की प्रसिद्ध शिक्षा शास्त्री हैं। उन्होंने परिश्रम और अध्यवसाय से प्रस्तुत ग्रन्थ लिखकर राजस्थान हिन्दी प्रत्थ अकादमी को अपना अमूल्य सहयोग दिया है, जिसके लिए धकादमी उनकी कुश है। अकादमी शिक्षा से संबंधित और भी अनेक महत्वपूर्ण एवं उपयोगी ग्रन्थ प्रकाशित कर रही है। प्रस्तुत ग्रन्थ उसी श्रृंखला की एक कड़ी है । उनकी मूलभूत स्थापनाएं जितनी उपयोगी है उतनी ही 'व्यावहारिक' भी है। राजस्थान हिन्दी ग्रन्थ अकादमी की मान्यता है कि प्रस्तुत ग्रन्थ शिक्षा की मनोवैज्ञानिक पृष्ठभूमि को समझाने में पूर्ण रूप से समर्थ एवं सहायक होगा ।
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