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Vakya vinyas ka saiddantik paksh

By: Contributor(s): Material type: TextTextPublication details: Jaipur; Rajasthan Hindi Grantha Akademi; 1975Description: 257 pDDC classification:
  • H 415 CHO
Summary: यह पुस्तक इस प्रकार संगठित की गई है। अध्याय 1 में पृष्ठभूमीय अभिग्रहों की रूपरेखा दी गई है। इसमें कदाचित ही कुछ नया हो किन्तु इसका उद्देश्य केवल सारांश देना और कुछ बिन्दुओंों का स्पष्टीकरण करना है जोकि तात्त्विक हैं और जिनको कुछ स्थितियों में बार-बार गलत समझा जा रहा है। अध्याय 2 और 3 में रचनांतरण व्याकरण के सिद्धान्त के पूर्वतर रूपान्तरणों के विविध दोपों पर विचार किया गया है। विवेच्य स्थिति वह है जो चॉम्स्की ( 1957), लीज (1960), पीर अन्य में है। ये लेखक रचनांतर व्याकरण के वाक्यविन्यासीय घटक के अन्तर्गत प्राधार रूप में पदबंध संरचना व्याकरण को स्वीकार करते हैं और माधार द्वारा प्रजनित संरचनाओं को वास्तविक वाक्यों में प्रतिचित्रित करने बाली रचनांतरण व्यवस्था को मानते हैं। यह स्थिति अध्याय 3 के प्रारम्भ में संक्षिप्त रूप से पुनः कथित की गई है। अध्याय 2 में साधार के वाक्यविन्यासीय पटक को, धौर इस प्रभिग्रह से कि वह यथार्थतः एक पदबंध संरचना व्याकरण है, उठने वाली कठिनाईयों को चर्चा की गई है। मध्याय 3 में रचनांतरण घटक के मौर उसके पाधार संरचनाओंों के संबंध में संशोधन का सुभाव दिया गया है। "व्याकरणिक रचनांत रण" की धारणा स्वयं बिना परिवर्तन (यद्यपि कुछ विनिर्देशनों के साथ) स्वीकार की गई है। अध्याय 4 में अनेक अवशिष्ट समस्याएँ उठाई गई हैं और संक्षेप में भोर पर्याप्त अनिर्णीत रूप में विवेचित की गई है ।
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यह पुस्तक इस प्रकार संगठित की गई है। अध्याय 1 में पृष्ठभूमीय अभिग्रहों की रूपरेखा दी गई है। इसमें कदाचित ही कुछ नया हो किन्तु इसका उद्देश्य केवल सारांश देना और कुछ बिन्दुओंों का स्पष्टीकरण करना है जोकि तात्त्विक हैं और जिनको कुछ स्थितियों में बार-बार गलत समझा जा रहा है। अध्याय 2 और 3 में रचनांतरण व्याकरण के सिद्धान्त के पूर्वतर रूपान्तरणों के विविध दोपों पर विचार किया गया है। विवेच्य स्थिति वह है जो चॉम्स्की ( 1957), लीज (1960), पीर अन्य में है। ये लेखक रचनांतर व्याकरण के वाक्यविन्यासीय घटक के अन्तर्गत प्राधार रूप में पदबंध संरचना व्याकरण को स्वीकार करते हैं और माधार द्वारा प्रजनित संरचनाओं को वास्तविक वाक्यों में प्रतिचित्रित करने बाली रचनांतरण व्यवस्था को मानते हैं। यह स्थिति अध्याय 3 के प्रारम्भ में संक्षिप्त रूप से पुनः कथित की गई है। अध्याय 2 में साधार के वाक्यविन्यासीय पटक को, धौर इस प्रभिग्रह से कि वह यथार्थतः एक पदबंध संरचना व्याकरण है, उठने वाली कठिनाईयों को चर्चा की गई है। मध्याय 3 में रचनांतरण घटक के मौर उसके पाधार संरचनाओंों के संबंध में संशोधन का सुभाव दिया गया है। "व्याकरणिक रचनांत रण" की धारणा स्वयं बिना परिवर्तन (यद्यपि कुछ विनिर्देशनों के साथ) स्वीकार की गई है। अध्याय 4 में अनेक अवशिष्ट समस्याएँ उठाई गई हैं और संक्षेप में भोर पर्याप्त अनिर्णीत रूप में विवेचित की गई है ।

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