Audhyogik Bharat: sangathit udyogyon ka visad addyan
Material type:
- H 338 CHA
Item type | Current library | Call number | Status | Date due | Barcode | Item holds |
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Gandhi Smriti Library | H 338 CHA (Browse shelf(Opens below)) | Available | 45857 |
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शिक्षा प्रयोग (1964-56) की संस्तुतियों के आधार पर भारत सरकार ने 1968 में शिक्षा सम्बन्धी अपनी राष्ट्रीय नीति घोषित की और 18 जनवरी 1968 को संसद के दोनों सदनों द्वारा इस सम्बन्ध में एक संकल्प पारित किया गया। उक्त संकल्प के अनुपालन में भारत सरकार के शिक्षा एवं युवक सेवा मन्त्रालय ने भारतीय भाषाओं के माध्यम से शिक्षण की व्यवस्था करने के लिए विश्वविद्यालय स्तरीय पाठ्य पुस्तकों के निर्माण का एक व्यवस्थित कार्यक्रम निश्चित किया। उस कार्यक्रम के अन्तर्गत भारत सरकार की शत-प्रतिशत सहायता से प्रत्येक राज्य में एक ग्रन्थ अकादमी की स्थापना की गयी इस राज्य में भी विश्वविद्यालय स्तर की प्रामाणिक पाठ्य पुस्तकें तैयार करने के लिए हिन्दी ग्रन्थ अकादमी की स्थापना 7 फरवरी, 1970 को की गयी ।
प्रामाणिक ग्रन्थ निर्माण की योजना के अन्तर्गत ग्रन्थ अकादमी विश्वविद्यालय स्तरीय विदेशी भाषाओं की पाठ्य पुस्तकों को हिन्दी में अनूदित करा रही है और अनेक विषयों की मौलिक पुस्तकों की भी रचना करा रही है। प्रकाश्य ग्रन्थों में भारत सरकार द्वारा स्वीकृत पारिभाषिक शब्दावली का प्रयोग किया जा रहा है।
उपर्युक्त योजना के अन्तर्गत वे पाण्डुलिपियाँ भी अकादमी द्वारा मुद्रित करायी जा रही हैं, जो भारत सरकार की मानक ग्रन्थ योजना के अन्तर्गत इस राज्य में स्था पित विभिन्न अधिकरणों द्वारा तैयार की गयी थीं।
प्रस्तुत पुस्तक इसी योजना के अन्तर्गत मुद्रित एवं प्रकाशित करायी गयी है। इसके लेखक शिवध्यान सिंह चौहान है। इस बहुमूल्य सहयोग के लिए उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान उनके प्रति आभारी है।
विश्व के विकासशील देशों में अग्रणी भारत की औद्योगिक उन्नति का यह बहुत ही सुन्दर विवरण पूर्ण आकलन है। भूमिका में भारत की प्राचीन हस्तकलाओं और मौलिक उद्योगों के सक्षिप्त इतिहास से लेकर उसकी पंचवर्षीय योजनाओं के विकास को परिलक्षित करते हुए छठी योजना (1980-85 ) तक का यह अद्यतन लेखा जोखा स्वयं में ही एक उपलब्धि है। हिन्दी में तो संभवतः इस प्रकार का यह पहला प्रयास है। जहां तक संभव हो सका है, विद्वान लेखक ने भारत के उद्यमशील प्रयत्नों की प्रत्येक विधा का विवरण प्रस्तुत करने का प्रयत्न किया है। विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं को तो इसमें बहुमूल्य सामग्री उपलब्ध होगी ही, नई पोड़ी में उद्योगों के प्रति रुमान पैदा करने में भी इसका युगान्तरकारी योगदान हो सकता है। जिस अध्ययन और अध्यवसाय से प्रोफेसर शिवपान सिंह चौहान 'आधुनिक परिवहन' और 'भारतीय परिवहन व्यवस्था' द्वारा यश अर्जित कर चुके हैं, यह निष्ठापूर्ण प्रयोग निक शोध के प्रति समर्पित है। संस्थान ऐसे मेधावी नैष्ठिक एवं वैज्ञा उस पथ को प्रशस्त करता प्रतीत होता का कृतज्ञ है कि व्यक्तिगत अस्तव्यस्तता के बावजूद उन्होंने ऐसा उपयोगी और प्रेरक अध्ययन जिज्ञासु पाठकों को सुलभ कराया।
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