Aginkhor
Material type:
- 9788126714667
- H 891.4330 REN
Item type | Current library | Call number | Status | Date due | Barcode | Item holds |
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Gandhi Smriti Library | H 891.4330 REN (Browse shelf(Opens below)) | Available | 181232 |
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H 891.433 PRE V.5 Mansarowar | H 891.433 RAG Charchit evem lokapriy Kahaaniyan | H 891.4330 RAY Hindi kahani ka itihas | H 891.4330 REN Aginkhor | H 891.433 SAC Premchand:kahani-shilp | H 891.433 SAJ Sajha sanskriti : Bhartiya fasiwad ka stree pratiyuttar/ edited by Sudha Singh | H 891.433 SAN Dehri ke vidhan ka shilp vidhan |
हिन्दी भाषा फणीश्वरनाथ रेणु की ऋणी है उस शब्द सम्पदा के लिए जो उन्होंने स्थानीय बोली-परम्परा से लेकर हिन्दी को दी। नितान्त ज़मीन की खुशबू से रचे शब्दों को खड़ी बोली के फ्रेम में रखकर उन्होंने ऐसे प्रस्तुत किया कि वे उनके पाठकों की स्मृति में हमेशा-हमेशा के लिए जड़े रह गए। उनके लेखन का अधिकांश इस अर्थ में बार-बार पठनीय है। दूसरे जिस कारण से रेणु को लौट-लौटकर पढ़ना जरूरी हो जाता है, वह है उनकी संवेदना और उसे शब्दों में चित्रित करने की उनकी कला। वे भारतीय लोकजीवन और जनसाधारण के अस्तित्व के लिए निर्णायक अहमियत रखनेवाली भावधाराओं को तक़रीबन जादुई ढंग से पकड़ते हैं, और उतनी ही कुशलता से उसे पाठक के सामने प्रस्तुत कर देते हैं। इस संग्रह में ‘अग्निखोर’ के अलावा ‘मिथुन राशि’, ‘अक्ल और भैंस’, ‘रेखाएँ: वृत्त चक्र’, ‘तब शुभ नामे’, ‘एक अकहानी का सुपात्र’, ‘जैव’, ‘मन का रंग’, ‘लफड़ा’, ‘अग्निसंचारक’ और ‘भित्ति चित्ररी मयूरी’ कहानियाँ शामिल हैं। इन ग्यारह कहानियों में से हर एक कहानी और उसका हर पात्र इस बात का प्रमाण है कि उत्तर भारत, विशेषकर गंगा के तटीय इलाक़ों की ग्राम्य संवेदना और जीवन को समझने के लिए रेणु का ‘होना’ कितना महत्त्वपूर्ण और ज़रूरी है।
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