Diwani Momin
Material type:
- 9789357756662
- H 891.4301 DIW
Item type | Current library | Call number | Status | Date due | Barcode | Item holds |
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Gandhi Smriti Library | H 891.4301 DIW (Browse shelf(Opens below)) | Available | 180827 |
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H 891.4301 CHA Yah devtayon ke sone ka samay hai (यह देवताओ के सोने का समय है) | H 891.4301 CHU Chuni huyi Hindi ghazals | H 891.4301 DAS Tum main aur ye waadi | H 891.4301 DIW Diwani Momin | H 891.4301 DWA V.1 Dwarika Prasad Maheshwari rachanawali | H 891.4301 DWA V.2 Dwarika Prasad Maheshwari rachanawali | H 891.4301 DWA V.3 Dwarika Prasad Maheshwari rachanawali |
जिनके एक शेर पर ग़ालिब अपना दीवान देने को तैयार थे ऐसी फ़नकाराना सलाहियत वाले मोमिन के साथ न्याय नहीं हुआ। मुहम्मद हुसैन आज़ाद ने आबे-हयात (जो प्रसिद्ध उर्दू कवियों की जीवनियों की पुस्तक है) के प्रथम संस्करण में मोमिन का उल्लेख तक करना उचित नहीं समझा। बाद में जब चारों तरफ़ से एतराज़ हुए तब दूसरे संस्करण में उनका उल्लेख किया । समालोचकों ने मुआमलाबन्दी, इश्क़ो-आशिक़ी का बयान, धार्मिकता का मिश्रण, नाजुक ख़याली, कठिन शब्दों का प्रयोग, दुरूहता आदि कई दोष मढ़कर उनकी विशुद्ध शाइरी को नज़रअन्दाज़ कर दिया। जबकि सच तो यह है कि ग़ज़ल के पारिभाषिक अर्थ पर खरी उतरने वाली शाइरी मोमिन ही की है। इश्क़ और आशिक़ी पर केन्द्रित उनकी शाइरी उर्दू की काव्य-परम्परा, विशेष रूप से ग़ज़ल, का निर्वाह करती है। मिर्ज़ा ग़ालिब उनके समकालीन थे और दोस्त भी। लेकिन इन दोनों की शाइरी पढ़ते हुए यह समझ में आता है कि अगर सृजन रहस्य रचना है तो उसे समझना रहस्य को प्राप्त करना है। इस यात्रा में यह खुलता है कि ग़ालिब जहाँ अपनी शाइरी में हुस्न के हवाले से दुनिया की बेहक़ीक़ती (भ्रम, माया) की सुरागरसानी (तलाश) करते हैं वहीं मोमिन हुस्नो-इश्क़ की गहराइयों तक उतरना चाहते हैं ।
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