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Aacharya Hazari Prasad Dwivedi ki sahitya drishti

By: Material type: TextTextPublication details: New Delhi Samkalin 2024Description: 292pISBN:
  • 9788197264795
Subject(s): DDC classification:
  • H 920.71 SHA
Summary: भारतीय वाङ्मय के धर्म और दर्शन, भाषा और साहित्य, इतिहास और विज्ञान के विभिन्न कूलों में बहने वाली धाराओं में अवगाहन कर साहित्य में दुर्लभ माणिक्य एकत्र करने वाला कोई है तो वह, चिन्तना के बेजोड़ विद्वान, विद्यावारिधि, पद्मभूषण डॉ. हजारीप्रसाद द्विवेदी। आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी का साहित्यिक व्यक्तित्व बहुआयामी रहा है। वे जन-चेतना की दृष्टि से साहित्येतिहास के शोधकर्ता एवं व्याख्याता, मर्मी विचारक, उपन्यासकार, ललित निबन्धकार, सम्पादक तथा एक बहुअधीत एवं बहुश्रुत आचार्य के रूप में मान्य हैं। उनके सूक्ष्म अध्ययन का विस्तार, उनके ज्ञान का असीम प्रसार, उनकी पकड़ का पैनापन, उनकी सहृदय संवेदना, उनकी अभिव्यक्ति की सरलता ने उन्हें विलक्षण साहित्यकार के रूप में प्रतिष्ठित किया है। साहित्यकार के रूप में द्विवेदी जी ने सृजन और दृष्टिकोण दोनों ही क्षेत्रों में प्रतिमान स्थापित किए हैं। अपनी ज्ञानात्मक और अनुभूत्यात्मक सम्पदा को दलित द्राक्षा की भांति निचोड़कर उन्होंने अपने साहित्य को सींचा है। सांस्कृतिक और साहित्यिक निबन्धों में प्राण-प्रतिष्ठा का कार्य उन्होंने अपने निबन्धों द्वारा किया है। विषयगत गम्भीरता, भाषागत सौष्ठव तथा शिल्पगत नवीन प्रयोगों के द्वारा उपन्यास को गम्भीर कलाकृति का दर्जा दिलाया है।
List(s) this item appears in: New Arrivals June, 2025
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Books Books Gandhi Smriti Library H 920.71 SHA (Browse shelf(Opens below)) Available 180660
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भारतीय वाङ्मय के धर्म और दर्शन, भाषा और साहित्य, इतिहास और विज्ञान के विभिन्न कूलों में बहने वाली धाराओं में अवगाहन कर साहित्य में दुर्लभ माणिक्य एकत्र करने वाला कोई है तो वह, चिन्तना के बेजोड़ विद्वान, विद्यावारिधि, पद्मभूषण डॉ. हजारीप्रसाद द्विवेदी। आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी का साहित्यिक व्यक्तित्व बहुआयामी रहा है। वे जन-चेतना की दृष्टि से साहित्येतिहास के शोधकर्ता एवं व्याख्याता, मर्मी विचारक, उपन्यासकार, ललित निबन्धकार, सम्पादक तथा एक बहुअधीत एवं बहुश्रुत आचार्य के रूप में मान्य हैं। उनके सूक्ष्म अध्ययन का विस्तार, उनके ज्ञान का असीम प्रसार, उनकी पकड़ का पैनापन, उनकी सहृदय संवेदना, उनकी अभिव्यक्ति की सरलता ने उन्हें विलक्षण साहित्यकार के रूप में प्रतिष्ठित किया है। साहित्यकार के रूप में द्विवेदी जी ने सृजन और दृष्टिकोण दोनों ही क्षेत्रों में प्रतिमान स्थापित किए हैं। अपनी ज्ञानात्मक और अनुभूत्यात्मक सम्पदा को दलित द्राक्षा की भांति निचोड़कर उन्होंने अपने साहित्य को सींचा है। सांस्कृतिक और साहित्यिक निबन्धों में प्राण-प्रतिष्ठा का कार्य उन्होंने अपने निबन्धों द्वारा किया है। विषयगत गम्भीरता, भाषागत सौष्ठव तथा शिल्पगत नवीन प्रयोगों के द्वारा उपन्यास को गम्भीर कलाकृति का दर्जा दिलाया है।

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