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Ikkisavin sadi ke vividh vimarsh

Contributor(s): Material type: TextTextPublication details: New Delhi Vani 2023Description: 904pISBN:
  • 9789355188526
Subject(s): DDC classification:
  • H 302.540920 IKK
Summary: प्रो. (डॉ.) अर्जुन चव्हाण, हिन्दी समीक्षक और साहित्यकार के रूप में करीबन चार दशकों से सुपरिचित हैं और विख्यात भी। उनके अभिनन्दन में विचार-विमर्श केन्द्रित ग्रन्थ का प्रकाशन साहित्य जगत की बड़ी उपलब्धि कहनी होगी। वर्तमान समय के शीर्षस्थ साहित्यकारों, समीक्षकों और चिन्तकों के साथ-साथ प्रौढ़ और युवा शोधकर्ताओं के सवासौ से अधिक लेखों से सम्पन्न यह ग्रन्थ एक ओर इक्कीसवीं सदी के साहित्यिक विमर्श को, तो दूसरी ओर प्रो. (डॉ.) अर्जुन चव्हाण के गरिमामयी व्यक्तित्व एवं कृतित्व को साकार करता है। इस वैचारिक ग्रन्थ के प्रमुख तीन वैशिष्ट्य कहने होंगे- इसमें विमर्श इक्कीस हैं, सदी इक्कीसवीं है और अभिनन्दित लेखक का षष्ठाब्दी वर्ष इक्कीसवीं सदी का इक्कीसवाँ वर्ष है। जिनका सारा जीवन साहित्य साधना के लिए समर्पित रहा, हज़ारों छात्रों, शोधकर्ताओं, लेखकों को राह दिखाई, उनकी षष्ठाब्दीपूर्ति के अवसर पर ग्रन्थ- सम्पादन सार्थक कहना होगा। प्रो. (डॉ.) अर्जुन चव्हाण का लेखन साहित्य तथा भाषा विमर्श केन्द्रित होने के कारण इसमें जनवादी विमर्श से लेकर लिव-इन-रिलेशनशिप विमर्श, भाषा विमर्श तक पचास लेख अठारह खण्डों में और अर्जुन जी से सम्बन्धित साहित्य विमर्श, व्यक्ति विमर्श तथा कृति विमर्श पर तीन खण्डों में संकलित हैं। प्रो. (डॉ.) अर्जुन चव्हाण अभिनन्दन ग्रन्थ हेतु आवाहन करने पर हज़ारों पन्नों की सामग्री देश तथा विदेश से प्राप्त हुई। सबको स्थान देना सम्भव न था। उनमें से छाँटने के बावजूद ग्रन्थ बृहदाकार बना। लेकिन इनमें कहीं पर भी पुनरावृत्ति नहीं मिलेगी। एक विद्वान व्यक्तित्व के कितने पहलू हो सकते हैं और कितनी नज़रों से अभिनन्दित लेखक को देखा जा सकता है। इसका अद्भुत रूप देखने को मिलता है।
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Books Books Gandhi Smriti Library H 302.540920 IKK C.1 (Browse shelf(Opens below)) Available 180747
Books Books Gandhi Smriti Library H 302.540920 IKK (Browse shelf(Opens below)) Available 180189
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प्रो. (डॉ.) अर्जुन चव्हाण, हिन्दी समीक्षक और साहित्यकार के रूप में करीबन चार दशकों से सुपरिचित हैं और विख्यात भी। उनके अभिनन्दन में विचार-विमर्श केन्द्रित ग्रन्थ का प्रकाशन साहित्य जगत की बड़ी उपलब्धि कहनी होगी। वर्तमान समय के शीर्षस्थ साहित्यकारों, समीक्षकों और चिन्तकों के साथ-साथ प्रौढ़ और युवा शोधकर्ताओं के सवासौ से अधिक लेखों से सम्पन्न यह ग्रन्थ एक ओर इक्कीसवीं सदी के साहित्यिक विमर्श को, तो दूसरी ओर प्रो. (डॉ.) अर्जुन चव्हाण के गरिमामयी व्यक्तित्व एवं कृतित्व को साकार करता है। इस वैचारिक ग्रन्थ के प्रमुख तीन वैशिष्ट्य कहने होंगे- इसमें विमर्श इक्कीस हैं, सदी इक्कीसवीं है और अभिनन्दित लेखक का षष्ठाब्दी वर्ष इक्कीसवीं सदी का इक्कीसवाँ वर्ष है। जिनका सारा जीवन साहित्य साधना के लिए समर्पित रहा, हज़ारों छात्रों, शोधकर्ताओं, लेखकों को राह दिखाई, उनकी षष्ठाब्दीपूर्ति के अवसर पर ग्रन्थ- सम्पादन सार्थक कहना होगा। प्रो. (डॉ.) अर्जुन चव्हाण का लेखन साहित्य तथा भाषा विमर्श केन्द्रित होने के कारण इसमें जनवादी विमर्श से लेकर लिव-इन-रिलेशनशिप विमर्श, भाषा विमर्श तक पचास लेख अठारह खण्डों में और अर्जुन जी से सम्बन्धित साहित्य विमर्श, व्यक्ति विमर्श तथा कृति विमर्श पर तीन खण्डों में संकलित हैं। प्रो. (डॉ.) अर्जुन चव्हाण अभिनन्दन ग्रन्थ हेतु आवाहन करने पर हज़ारों पन्नों की सामग्री देश तथा विदेश से प्राप्त हुई। सबको स्थान देना सम्भव न था। उनमें से छाँटने के बावजूद ग्रन्थ बृहदाकार बना। लेकिन इनमें कहीं पर भी पुनरावृत्ति नहीं मिलेगी। एक विद्वान व्यक्तित्व के कितने पहलू हो सकते हैं और कितनी नज़रों से अभिनन्दित लेखक को देखा जा सकता है। इसका अद्भुत रूप देखने को मिलता है।

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