Nirgun kavya mein nari
Material type:
- 9788119989386
- H 891.4308 RAI
Item type | Current library | Call number | Status | Date due | Barcode | Item holds |
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Gandhi Smriti Library | H 891.4308 RAI (Browse shelf(Opens below)) | Available | 180309 |
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H 891.4308 PRA V.1 C.2 Prasad granthawali | H 891.4308 RAH Ayey ka kavya: samvedna aur shilp | H 891.4308 RAI Raidas Granthawali / ed. by N. Singh | H 891.4308 RAI Nirgun kavya mein nari | H 891.4308 RAJ Hindi Sahitya Ka Aadha Itihas | H 891.4308 RAJ Sahitya roop: shastriya vishleshan | H 891.4308 RAM Ramchandra Shukla Sanchayita / ed. by Ramchandra Tiwari |
नारी सृष्टि का आधार है। वह जीवनी शक्ति है। इसलिए वह आरम्भ से ही चिन्तन का केन्द्र रही है। निर्गुण कवियों ने नारी पर काफ़ी कुछ लिखा है। लेकिन उसका सही-सही मूल्यांकन भी हुआ है, ऐसा कहना सम्भव नहीं।...कम-से-कम संतों के नारी-विषयक चिन्तन के प्रति यह धारणा ही बद्धमूल हो गई थी कि वे नारी के घोर निन्दक और विरोधी रहे हैं। इसका कारण सम्भवतः यह रहा कि उनके साहित्य को समग्रता में नहीं देखा गया और न ही सन्दर्भ के सही परिप्रेक्ष्य में उसे विश्लेषित करने की कोशिश की गई। इसके लिए यह बहुत आवश्यक है कि उस समय की सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक, ऐतिहासिक तथा सांस्कृतिक स्थितियों के आलोक में उसका मूल्यांकन किया जाए। इन तमाम सन्दर्भों के सही परिप्रेक्ष्य में निर्गुण कवियों की नारी-भावना का जब हम विश्लेषण करते हैं तो सारी पिछली बद्धमूल धारणाएँ निराधार हो जाती हैं। एक नई दृष्टि से, यह पुस्तक इसी मिथक को तोड़ने और निर्गुण काव्य के इस पक्ष विशेष के मूल्यांकन में कुछ नये आयाम जोड़ने का एक विनम्र प्रयास है।
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