Hindi upanyas aur yatharthwad
Material type:
- 9789355181039
- H 891.4308 SIN
Item type | Current library | Call number | Status | Date due | Barcode | Item holds |
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Gandhi Smriti Library | H 891.4308 SIN (Browse shelf(Opens below)) | Available | 180171 |
हिन्दी उपन्यास और यथार्थवाद - हिन्दी में उपन्यास बंगला के माध्यम से ही आया, इसे अस्वीकार नहीं किया जा सकता। स्वर्गीय पण्डित माधवप्रसाद मिश्र ने स्पष्ट शब्दों में लिखा था : "जो हो, रिक्तहस्ता हिन्दी ने बँगला के सद्यःपूर्ण भण्डार से केवल 'उपन्यास' शब्द ही को ग्रहण नहीं किया वरंच इसका बहुत-सा उपकरण भी इस लघीयसी को उसी महीयसी से मिला है। हिन्दी के प्राणप्रतिष्ठाता स्वयं भारतेन्दु जी ने बंगला के उपन्यासादि के अनुवाद हिन्दी के भण्डार में वृद्धि की और उनके पीछे स्वर्गीय पण्डित प्रतापनारायण मिश्र जी ने भी इसी मार्ग का अनुसरण किया। इसके साथ ही उक्त महानुभावों ने कृतज्ञतावश यह भी स्वीकार किया है कि जब तक हिन्दी भाषा अपनी इस बड़ी बहन बंगला का सहारा न लेगी, तब तक वह उन्नत न होगी।" परन्तु हिन्दी उपन्यास मूलतः पश्चिम की देन है जो बंगला से छनकर आया था। उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में अंग्रेज़ी शिक्षा के प्रचार और प्रसार से जहाँ पश्चिमी विचारधारा, पश्चिमी रहन-सहन और पश्चिमी वेशभूषा का चलन बढ़ रहा था, वहाँ पश्चिम के नये साहित्य-रूपों का भी हिन्दी में प्रचार होने लगा था और उपन्यास उन नये साहित्य रूपों में सर्वप्रमुख था। पुस्तक की भूमिका से
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