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Sahityik nibandh

Contributor(s): Material type: TextTextPublication details: New Delhi Vani 2023Description: 760pISBN:
  • 9789357751933
Subject(s): DDC classification:
  • H 891.4304 SAH
Summary: हिन्दी साहित्य के इतिहास, समीक्षा, सिद्धान्त, विविध काव्य एवं गद्य विधाओं व उनके प्रतिनिधि लेखकों पर प्रसिद्ध विद्वानों के निबन्धों का महत्त्वपूर्ण संग्रह । ★ हिन्दी के शीर्षस्थ विद्वानों- आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी, डॉ. नगेन्द्र, डॉ. देवेन्द्रनाथ शर्मा, डॉ. उदयभानु सिंह, डॉ. भोलाशंकर व्यास, डॉ. प्रेमशंकर, डॉ. शिवसहाय पाठक, डॉ. राममूर्ति त्रिपाठी, डॉ. विष्णुकान्त शास्त्री आदि के निबन्धों के संकलन से चर्चित व महत्त्वपूर्ण निबन्ध | ★ दलित साहित्य तथा स्वातन्त्र्योत्तर गीत जैसे नव्यतम प्रासंगिक विषयों पर उत्कृष्ट निबन्धों का संचयन । साहित्यिक निबन्ध का तृतीय संस्करण सन् 1985 में प्रकाशित हुआ था जो शीघ्र ही समाप्त हो गया। पिछले 20 वर्षों से पाठकों को पुस्तक तो नहीं उपलब्ध हो सकी पर माँग बराबर बनी रही। इस बीच प्रभूत साहित्य सामने आया है और उसके विचार-विमर्श का तौर-तरीका भी बदला है । अतः इसके संशोधन एवं परिवर्धन की आवश्यकता का भी अनुभव किया गया। इसे प्रासंगिक बनाने के लिए प्रमुख वाद एवं विधाओं पर अनेक सारगर्भित निबन्ध जोड़े गये हैं, साथ ही पूर्व प्रकाशित अधिकांश निबन्धों को भी तद्वत ले लिया गया है। इस प्रकार प्रस्तुत है साहित्यिक निबन्ध का यह परिवर्धित और संशोधित संस्करण
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Books Books Gandhi Smriti Library H 891.4304 SAH (Browse shelf(Opens below)) Available 180168
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हिन्दी साहित्य के इतिहास, समीक्षा, सिद्धान्त, विविध काव्य एवं गद्य विधाओं व उनके प्रतिनिधि लेखकों पर प्रसिद्ध विद्वानों के निबन्धों का महत्त्वपूर्ण संग्रह । ★ हिन्दी के शीर्षस्थ विद्वानों- आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी, डॉ. नगेन्द्र, डॉ. देवेन्द्रनाथ शर्मा, डॉ. उदयभानु सिंह, डॉ. भोलाशंकर व्यास, डॉ. प्रेमशंकर, डॉ. शिवसहाय पाठक, डॉ. राममूर्ति त्रिपाठी, डॉ. विष्णुकान्त शास्त्री आदि के निबन्धों के संकलन से चर्चित व महत्त्वपूर्ण निबन्ध | ★ दलित साहित्य तथा स्वातन्त्र्योत्तर गीत जैसे नव्यतम प्रासंगिक विषयों पर उत्कृष्ट निबन्धों का संचयन । साहित्यिक निबन्ध का तृतीय संस्करण सन् 1985 में प्रकाशित हुआ था जो शीघ्र ही समाप्त हो गया। पिछले 20 वर्षों से पाठकों को पुस्तक तो नहीं उपलब्ध हो सकी पर माँग बराबर बनी रही। इस बीच प्रभूत साहित्य सामने आया है और उसके विचार-विमर्श का तौर-तरीका भी बदला है । अतः इसके संशोधन एवं परिवर्धन की आवश्यकता का भी अनुभव किया गया। इसे प्रासंगिक बनाने के लिए प्रमुख वाद एवं विधाओं पर अनेक सारगर्भित निबन्ध जोड़े गये हैं, साथ ही पूर्व प्रकाशित अधिकांश निबन्धों को भी तद्वत ले लिया गया है। इस प्रकार प्रस्तुत है साहित्यिक निबन्ध का यह परिवर्धित और संशोधित संस्करण

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