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Kitni Navon Mein Kitani Baar

By: Material type: TextTextSeries: Lokodya granthmala ; 245Publication details: New Delhi Vani 2023Edition: 18th edDescription: 100pISBN:
  • 9789355189301
Subject(s): DDC classification:
  • H 891.431 AGY
Summary: कितनी नावों में कितनी बार - ज्ञानपीठ पुरस्कार (1978) से सम्मानित कितनी नावों में कितनी बार 'अज्ञेय' की 1962 से 1966 के बीच रचित कविताओं का संकलन है। यों तो 'अज्ञेय' की कविताओं के किसी भी संग्रह के लिए कहा जा सकता है कि वह उनकी जीवन-दृष्टि का परिचायक है, किन्तु प्रस्तुत संग्रह इस रूप में विशिष्ट है कि अज्ञेय की सतत सत्य-सन्धानी दृष्टि की अटूट, खरी अनुभूति की टंकार इसमें मुख्य रूप से गूँजती है। कितनी नावों में कितनी बार में कवि ने एक बार फिर अपनी अखण्ड मानव- आस्था को भारतीयता के नाम से प्रचलित अवाक् रहस्यवादिता से वैसे ही दूर रखा है जैसे प्रगल्भ आधुनिक अनास्था के साँचे से उसे हमेशा दूर रखता रहा है। मनुष्य की गति और उसकी नियति की ऐसी पकड़ समकालीन कविता में अन्यत्र दुर्लभ है । पाठकों को समर्पित है इस कृति का यह नया संस्करण।
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कितनी नावों में कितनी बार - ज्ञानपीठ पुरस्कार (1978) से सम्मानित कितनी नावों में कितनी बार 'अज्ञेय' की 1962 से 1966 के बीच रचित कविताओं का संकलन है। यों तो 'अज्ञेय' की कविताओं के किसी भी संग्रह के लिए कहा जा सकता है कि वह उनकी जीवन-दृष्टि का परिचायक है, किन्तु प्रस्तुत संग्रह इस रूप में विशिष्ट है कि अज्ञेय की सतत सत्य-सन्धानी दृष्टि की अटूट, खरी अनुभूति की टंकार इसमें मुख्य रूप से गूँजती है। कितनी नावों में कितनी बार में कवि ने एक बार फिर अपनी अखण्ड मानव- आस्था को भारतीयता के नाम से प्रचलित अवाक् रहस्यवादिता से वैसे ही दूर रखा है जैसे प्रगल्भ आधुनिक अनास्था के साँचे से उसे हमेशा दूर रखता रहा है। मनुष्य की गति और उसकी नियति की ऐसी पकड़ समकालीन कविता में अन्यत्र दुर्लभ है । पाठकों को समर्पित है इस कृति का यह नया संस्करण।

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