Ajneya rachanavali (18 vol. set )
Material type:
- 9788126320912
- H 891.43108 AJN
Item type | Current library | Call number | Status | Date due | Barcode | Item holds |
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Gandhi Smriti Library | H 891.43108 AJN V.10 (Browse shelf(Opens below)) | Available | 169243 | ||
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Gandhi Smriti Library | H 891.43108 AJN V.18 (Browse shelf(Opens below)) | Available | 169251 | ||
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Gandhi Smriti Library | H 891.43108 AJN V.12 (Browse shelf(Opens below)) | Available | 169245 | ||
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Gandhi Smriti Library | H 891.43108 AJN V.11 (Browse shelf(Opens below)) | Available | 169244 | ||
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Gandhi Smriti Library | H 891.43108 AJN V.1 (Browse shelf(Opens below)) | Available | 169234 | ||
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Gandhi Smriti Library | H 891.43108 AJN V.9 (Browse shelf(Opens below)) | Available | 169242 | ||
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Gandhi Smriti Library | H 891.43108 AJN V.8 (Browse shelf(Opens below)) | Available | 169241 | ||
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Gandhi Smriti Library | H 891.43108 AJN V.7 (Browse shelf(Opens below)) | Available | 169240 | ||
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Gandhi Smriti Library | H 891.43108 AJN V.6 (Browse shelf(Opens below)) | Available | 169239 | ||
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Gandhi Smriti Library | H 891.43108 AJN V.5 (Browse shelf(Opens below)) | Available | 169238 | ||
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Gandhi Smriti Library | H 891.43108 AJN V.4 (Browse shelf(Opens below)) | Available | 169237 | ||
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Gandhi Smriti Library | H 891.43108 AJN V.3 (Browse shelf(Opens below)) | Available | 169236 | ||
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Gandhi Smriti Library | H 891.43108 AJN V.2 (Browse shelf(Opens below)) | Available | 169235 |
अज्ञेय रचनावली - अज्ञेय एक ऐसे विलक्षण और विदग्ध रचनाकार हैं, जिन्होंने भारतीय भाषा और साहित्य को भारतीय आधुनिकता और प्रयोगधर्मिता से सम्पन्न किया है; तथा बीसवीं सदी की मूलभूत अवधारणा 'स्वतन्त्रता' को अपने सृजन और चिन्तन में केन्द्रीय स्थान दिया है। उनकी यह भारतीय आधुनिकता उन्हें न सिर्फ़ हिन्दी, बल्कि समूचे भारतीय साहित्य का एक 'क्लासिक' बनाती है। विद्रोही और प्रश्नाकुल रचनाकार अज्ञेय ने कविता, उपन्यास, कहानी, निबन्ध, नाटक, आलोचना, डायरी, यात्रा-वृत्तान्त, संस्मरण, सम्पादन, अनुवाद, व्यवस्थापन, पत्रकारिता आदि विधाओं में लेखन किया है। उनके क्रान्तिकारी चिन्तन ने प्रयोगवाद, नयी कविता और समकालीन सृजन में निरन्तर नये प्रयोगों से नये सृजन के प्रतिमान निर्मित किये हैं। जड़ीभूत एवं रूढ़ जीवन-मूल्यों से खुला विद्रोह करते हुए इस साधक ने जिन नयी राहों का अन्वेषण किया, वे असहमति और विरोध का मुद्दा भी बनीं, लेकिन आज स्थिति यह है कि अज्ञेय को ठीक से समझे बिना नयी पीढ़ी के रचनाकर्म के संकट का आकलन करना ही मुश्किल है। अज्ञेय रचनावली में अज्ञेय का तमाम क्षेत्रों में किया गया विपुल लेखन पहली बार एक जगह समग्र रूप में संकलित है। अज्ञेय जन्मशताब्दी के इस ऐतिहासिक अवसर पर हिन्दी के मर्मज्ञ और प्रसिद्ध आलोचक प्रो. कृष्णदत्त पालीवाल के सम्पादन में यह कार्य विधिवत सम्पन्न हुआ । आशा है, हिन्दी साहित्य के शोधार्थियों एवं अध्येताओं के लिए अज्ञेय की सम्पूर्ण रचना-सामग्री एक ही जगह एक साथ उपलब्ध हो सकेगी।
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