Dhoomil Samagra (set of 3 vol.)
Material type:
- 9789389598865
- H 891.43109 DHO V.2
Item type | Current library | Call number | Status | Date due | Barcode | Item holds |
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Gandhi Smriti Library | H 891.43109 DHO V.2 (Browse shelf(Opens below)) | Available | 168916 |
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धूमिल की कविता वह कहती है जो गद्यकारों के स्पष्ट निष्कर्ष नहीं कह पाते। जिस चीज को वे वक्तव्य कहते हैं, वह सच जान चुके भाषणबाजों का कोई दो टूक फैसला नहीं है, वह चीजों के उस चेहरे को पकड़ने का उद्यम है जो देखने की सिद्ध और आत्मसम्पूर्ण परिपाटियों से छूट-छूट जाता है। उनकी कविता कवि से ज्यादा एक सतत चिन्तित व्यक्ति की कविता है।
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