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Maanav aur sanskriti v.1982

By: Material type: TextTextPublication details: New Delhi Rajkamal prakeshan 1982Description: 287 pDDC classification:
  • H 307 DUB 3rd. ed.
Summary: मानवीय अध्ययनों में नृतत्व अथवा मानवविज्ञान का स्थान अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। इस विषय का विकास बड़ी तीव्र गति से हुआ है और अब तो यह अनेक स्वयंपूर्ण भागों और उपभागों में विभाजित होता जा रहा है। प्रस्तुत पुस्तक मानवविज्ञान की उस शाखा की परिचयात्मक रूपरेखा है जो मानवीय संस्कृति के विभिन्न पक्षों का अध्ययन करती है। संस्कृति को समझने के लिए मानवविज्ञान के जिन अन्य अंगों का परिचय आवश्यक है, उनका स्पर्श मात्र इस पुस्तक में किया गया है। लेखक ने सांस्कृतिक मानवविज्ञान के सर्वमान्य तथ्यों को भारतीय पृष्ठभूमि में प्रस्तुत करने का यत्न किया है। इस सीमित उद्देश्य के कारण जहाँ तक हो सका है समकालीन सैद्धान्तिक वाद-विवादों के प्रति तटस्थता का दृष्टिकोण अपनाया गया है। हिन्दी के माध्यम से आधुनिक वैज्ञानिक विषयों पर लिखने में अनेक हैं। प्रामाणिक पारिभाषिक शब्दावली का अभाव उनमें सबसे अधिक उल्लेखनीय है; इस पुस्तक में प्रचलित हिन्दी शब्दों के साथ राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय शब्दावली का उपयोग यथासम्भव किया गया है। जहाँ आवश्यक समझा गया, कुछ नये पारिभाषिक शब्द भी बना लिये गये हैं। विषय का स्पष्टीकरण लेखक का उद्देश्य रहा है, और इसकी सिद्धि के लिए पारिभाषिक शब्दावली सम्बन्धी सैद्धान्तिक मतभेदों के प्रति लेखक ने किसी विशिष्ट आग्रह अथवा दुराग्रह को नहीं अपनाया । यह इस पुस्तक का तीसरा संस्करण है। समसामयिक शोध की महत्त्वपूर्ण सामग्री तथा कतिपय नयी सैद्धान्तिक स्थापनाओं का समावेश इस संस्करण में कर लिया गया है। मूलतः हिन्दी के सामान्य किन्तु प्रबुद्ध पाठक के लिए लिखी गयी इस पुस्तक को स्नातक कक्षाओं के विद्यार्थियों ने भी उपयोगी पाया है। आशा है संस्कृति की प्रकृति और संरचना तथा सामाजिक गठन के सिद्धान्तों को समझने में उन्हें इस परिवर्तित और परिवर्धित संस्करण से सहायता मिलेगी।
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Books Books Gandhi Smriti Library H 307 DUB 3rd. ed. (Browse shelf(Opens below)) Available 43852
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मानवीय अध्ययनों में नृतत्व अथवा मानवविज्ञान का स्थान अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। इस विषय का विकास बड़ी तीव्र गति से हुआ है और अब तो यह अनेक स्वयंपूर्ण भागों और उपभागों में विभाजित होता जा रहा है। प्रस्तुत पुस्तक मानवविज्ञान की उस शाखा की परिचयात्मक रूपरेखा है जो मानवीय संस्कृति के विभिन्न पक्षों का अध्ययन करती है। संस्कृति को समझने के लिए मानवविज्ञान के जिन अन्य अंगों का परिचय

आवश्यक है, उनका स्पर्श मात्र इस पुस्तक में किया गया है। लेखक ने सांस्कृतिक मानवविज्ञान के सर्वमान्य तथ्यों को भारतीय पृष्ठभूमि में प्रस्तुत करने का यत्न किया है। इस सीमित उद्देश्य के कारण जहाँ तक हो सका है समकालीन सैद्धान्तिक वाद-विवादों के प्रति तटस्थता का दृष्टिकोण अपनाया गया है।

हिन्दी के माध्यम से आधुनिक वैज्ञानिक विषयों पर लिखने में अनेक हैं। प्रामाणिक पारिभाषिक शब्दावली का अभाव उनमें सबसे अधिक उल्लेखनीय है; इस पुस्तक में प्रचलित हिन्दी शब्दों के साथ राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय शब्दावली का उपयोग यथासम्भव किया गया है। जहाँ आवश्यक समझा गया, कुछ नये पारिभाषिक शब्द भी बना लिये गये हैं। विषय का स्पष्टीकरण लेखक का उद्देश्य रहा है, और इसकी सिद्धि के लिए पारिभाषिक शब्दावली सम्बन्धी सैद्धान्तिक मतभेदों के प्रति लेखक ने किसी विशिष्ट आग्रह अथवा दुराग्रह को नहीं अपनाया ।

यह इस पुस्तक का तीसरा संस्करण है। समसामयिक शोध की महत्त्वपूर्ण सामग्री तथा कतिपय नयी सैद्धान्तिक स्थापनाओं का समावेश

इस संस्करण में कर लिया गया है।

मूलतः हिन्दी के सामान्य किन्तु प्रबुद्ध पाठक के लिए लिखी गयी इस पुस्तक को स्नातक कक्षाओं के विद्यार्थियों ने भी उपयोगी पाया है। आशा है संस्कृति की प्रकृति और संरचना तथा सामाजिक गठन के सिद्धान्तों को समझने में उन्हें इस परिवर्तित और परिवर्धित संस्करण से सहायता मिलेगी।

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