Hindi bhasha aur lipi ke etihasik vikas v.1981
Material type:
- H 491.4309 TRI
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Gandhi Smriti Library | H 491.4309 TRI (Browse shelf(Opens below)) | Available | 43773 |
हिन्दी भाषा के ऐतिहासिक विकास को संतुलित रूप में प्रस्तुत करना इस कृति का लक्ष्य है । हिन्दी का विकास वस्तुतः डिंगल, ब्रजी, अवधी और बड़ी बोली हिन्दी के साहित्यिक रूपों का इतिहास है। डिंगल काव्यों से लेकर आधु निक हिन्दी नयी कविता तक के भाषारूपों के आधार पर इस विकास की रूप रेखा प्रथम बार विस्तृत रूप में इस कृति में स्पष्ट की गयी है। इस विकासात्मक अध्ययन में भाषाओं के साहित्यिक रूपों के साथ उनके कथ्यरूपों का भी विवेचन किया गया है और विकास के उत्थानों के लिए कालपरक नामों के अतिरिक्त भाषापरक नाम भी सुझाए गए हैं। आधुनिक भारतीय आर्यभाषाओं के वर्गी करण पर विचार करते समय लेखक ने डॉ० ग्रियर्सन और डॉ० सुनीति कुमार चटर्जी के वर्गीकरणों की सम्यक् परीक्षा करके उनकी सीमाओं का निर्देश किया है। हिन्दी ध्वनियों का ऐतिहासिक विवेचन उनकी विकासात्मक प्रवृत्तियों के आधार पर किया गया है। इन प्रवृत्तियों का उद्घाटन इस प्रयास को अपनी विशिष्टता है । व्याकरणिक विकास के सन्दर्भ में किया गया हिन्दी प्रत्ययों का वर्गीकरण भी इस कृति की नवीनता है ।
प्रारम्भ में संसार की भाषाओं के परिवेश में हिन्दी के महत्व का आकलन है और अन्त में विश्व की लिपियों के सन्दर्भ में देवनागरी लिपि का ऐतिहासिक विश्लेषण किया गया है। लेखक की दृष्टि में देवनागरी लिपि के वर्तमान संशोधित रूप का 'हिन्दी लिपि' नाम अधिक समीचीन है ।
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