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Atmakatha

By: Material type: TextTextPublication details: New Delhi Gayan ganga 2022Description: 182 pISBN:
  • 9789380183381
Subject(s): DDC classification:
  • H 320.540924 RAM
Summary: आत्मकथा—रामप्रसाद बिस्मिल अंतिम समय निकट है। दो फाँसी की सजाएँ सिर पर झूल रही हैं। पुलिस को साधारण जीवन में और समाचार-पत्रों तथा पत्रिकाओं में खूब जी भर के कोसा है। खुली अदालत में जज साहब, खुफिया पुलिस के अफसर, मजिस्ट्रेट, सरकारी वकील तथा सरदार को खूब आड़े हाथों लिया है। हरेक के दिल में मेरी बातें चुभ रही हैं। कोई दोस्त, आशना अथवा यार मददगार नहीं, जिसका सहारा हो। एक परमपिता परमात्मा की याद है। गीता पाठ करते हुए संतोष है— जो कुछ किया सो तैं किया, मैं खुद की हा नाहिं, जहाँ कहीं कुछ मैं किया, तुम ही थे मुझ माहिं। ‘जो फल की इच्छा को त्याग करके कर्मों को ब्रह्म में अर्पण करके कर्म करता है, वह पाप में लिप्‍त नहीं होता। जिस प्रकार जल में रहकर भी कमलपत्र जलमय नहीं होता।’ जीवनपर्यंत जो कुछ किया, स्वदेश की भलाई समझकर किया। यदि शरीर की पालना की तो इसी विचार से कि सुदृढ़ शरीर से भली प्रकार स्वदेश-सेवा हो सके। बड़े प्रयत्‍नों से यह शुभ दिन प्राप्‍त हुआ। संयुक्‍त प्रांत में इस तुच्छ शरीर का ही सौभाग्य होगा। जो सन् 1857 के गदर की घटनाओं के पश्‍चात् क्रांतिकारी आंदोलन के संबंध में इस प्रांत के निवासी का पहला बलिदान मातृ-वेदी पर होगा। —इसी पुस्तक से अमर शहीद, क्रांतिकारियों के प्रेरणा-ग्रंथ पं. रामप्रसाद ‘बिस्मिल’ की आत्मकथा मात्र आत्मकथा नहीं है।
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Books Books Gandhi Smriti Library H 320.540924 RAM (Browse shelf(Opens below)) Available 168552
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आत्मकथा—रामप्रसाद बिस्मिल अंतिम समय निकट है। दो फाँसी की सजाएँ सिर पर झूल रही हैं। पुलिस को साधारण जीवन में और समाचार-पत्रों तथा पत्रिकाओं में खूब जी भर के कोसा है। खुली अदालत में जज साहब, खुफिया पुलिस के अफसर, मजिस्ट्रेट, सरकारी वकील तथा सरदार को खूब आड़े हाथों लिया है। हरेक के दिल में मेरी बातें चुभ रही हैं। कोई दोस्त, आशना अथवा यार मददगार नहीं, जिसका सहारा हो। एक परमपिता परमात्मा की याद है। गीता पाठ करते हुए संतोष है— जो कुछ किया सो तैं किया, मैं खुद की हा नाहिं, जहाँ कहीं कुछ मैं किया, तुम ही थे मुझ माहिं। ‘जो फल की इच्छा को त्याग करके कर्मों को ब्रह्म में अर्पण करके कर्म करता है, वह पाप में लिप्‍त नहीं होता। जिस प्रकार जल में रहकर भी कमलपत्र जलमय नहीं होता।’ जीवनपर्यंत जो कुछ किया, स्वदेश की भलाई समझकर किया। यदि शरीर की पालना की तो इसी विचार से कि सुदृढ़ शरीर से भली प्रकार स्वदेश-सेवा हो सके। बड़े प्रयत्‍नों से यह शुभ दिन प्राप्‍त हुआ। संयुक्‍त प्रांत में इस तुच्छ शरीर का ही सौभाग्य होगा। जो सन् 1857 के गदर की घटनाओं के पश्‍चात् क्रांतिकारी आंदोलन के संबंध में इस प्रांत के निवासी का पहला बलिदान मातृ-वेदी पर होगा। —इसी पुस्तक से अमर शहीद, क्रांतिकारियों के प्रेरणा-ग्रंथ पं. रामप्रसाद ‘बिस्मिल’ की आत्मकथा मात्र आत्मकथा नहीं है।

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