Poshan evam aahar vigyan
Material type:
- 9789380801469
- H 613.2 CHA
Item type | Current library | Call number | Status | Date due | Barcode | Item holds |
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Gandhi Smriti Library | H 613.2 CHA (Browse shelf(Opens below)) | Available | 168430 |
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H 613.2 Sawasth Jivan ke sapon | H 613.2 AGR Aaahar vigyan | H 613.2 AIV Aahar Yog | H 613.2 CHA Poshan evam aahar vigyan | H 613.2 DIE Diet aur dieting | H 613.2 RAI Posan evam swasthya vigyan | H 613.2 SHA Kuposhan aur swasthya |
भोजन के ये सभी प्रमुख अवयव जिन-जिन भोज्य पदार्थों में प्रमुख रूप से पाए जाते हैं. इसका ज्ञान भी आहार आयोजन करने वाले को होना चाहिए। इसकी सुविधा के लिए खाद्य पदार्थों को उनके पोषक तत्वों के अनुसार सात आधारभूत वर्गों में बाँट दिया गया है। इनके उपर्युक्त और अनुपयुक्त सम्मिश्रण से ही संतुलित आहार बनता है। दैनिक आहर में उनम ढंग से इनका सम्मिश्रण हो सके और साथ ही आहार ऐसा भी हो जिसमें एकरसता न हो. तथा जां कभी इस बात का ज्ञान उस व्यक्ति के लिए अनिवार्य है जो घर-परिवार के लिए आहार - आयोजन करता है। इन सातों ग्रुपों के भाज्य पदार्थों का टेबल पर विभिन्न रूपों में किस प्रकार लाया जाए. इसी दृष्टि सं आहार- शास्त्र में विभिन्न व्यंजनों का महत्व है। व्यंजन विधि के अध्ययन में महज की अनुमान लगाया जा सकता है कि इस दृष्टि से आहारशास्त्र में विभिन्न व्यंजनों का महत्व है। व्यंजन विधि के अध्ययन में महज ही अनुमान लगाया जा सकता है अत: उन्हें अनेक रूपों में उबल र प्रस्तुत करके सफल आहार आयोजन किया जा सकता है। जैसे दूध पीना बहुतों के कठिन होता है इसे विभिन्न प्रकार के अंजन में प्रस्तुत किया जा सकता है। के तरह-तरह के रायतं, दही बहन के संदेश रसगुल्ला छेना पाई आदि के रूप में टेबल पर लाया जा सकता है। खाना भी चने नहीं है और प्रसन्न होकर के रूप में महज हो ग्रहण कर न पोषक तत्वों को प्राप्त करते *वाल तथा विभिन्नता तथा विविधता से परिपूर्ण नवरूप धारण किए हुए भयप्रदार्थ खाने वाले व्यक्ति को संतुष्टि प्रदान यह प्रसन्न होकर आहार ग्रहण करता है।
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