Jungle jaag utha
Material type:
- 9769387774262
- H BIH B
Item type | Current library | Call number | Status | Date due | Barcode | Item holds |
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Gandhi Smriti Library | H BIH B (Browse shelf(Opens below)) | Available | 168444 |
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आदिवासी साहित्य एक उभरता हुआ विमर्श है हिन्दी साहित्य में आरंभ से लेकर अब तक काल चार कालखंडों, अनेक प्रवृतियों और कई विमर्शो में बंटा हुआ है विवाद और हिन्दी साहित्य का चोली दामन का साथ रहा है। सबसे पहले तो काल विभाजन को लेकर ही अच्छा-खासा विवाद रहा है। नामाकरण को लेकर भी मतैक्यता नहीं रही है। फिर प्रवृत्तियों को लेकर हुआ और अब विमर्श बहस में है बहस की शुरूआत कौन करता है, यह भी महत्वपूर्ण है कौन लीक से हटकर चलता है, कौल नई बात अलग अंदाज में उठता है? साहित्य लंबे समय तक कला कौशल का दूसरा नाम माना जाता रहा है। कला पर काफी बातें होती रही हैं। नाटक और रस शास्त्रा भारत की जमीन पर लिखे रचे गए हैं। साहित्य सदियों पच्चाकारी और बारीक बुनावटों में उलझ रहा है। रस, अलंकारों और उच्चकुलोत्पन्न की भूल भुलैया में भटकता रहा है। निराला जैसे क्रांतिकारी कवि ने छंद मुक्ति का बिगुल बजाया, नामवर सिंह ने देसरी परंपरा की खोज की, हंस के संपादक राजेन्द्र यादव ने सभी विमर्श चलाया और दलित आंदोलन को एक दिशा देने में पहल की। ऐसे ही रचनाकारों की बदौलत नए धरातलों, नई जमीनों और अछूते विषयों की खोजबीन होती रही है।
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