Tum main aur ye waadi
Material type:
- 9789394603424
- H 891.4301 DAS
Item type | Current library | Call number | Status | Date due | Barcode | Item holds |
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Gandhi Smriti Library | H 891.4301 DAS (Browse shelf(Opens below)) | Available | 172139 |
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H 891.4301 ANK Ankit hone do unke sapno ka itihas | H 891.4301 CHA Yah devtayon ke sone ka samay hai (यह देवताओ के सोने का समय है) | H 891.4301 CHU Chuni huyi Hindi ghazals | H 891.4301 DAS Tum main aur ye waadi | H 891.4301 DIW Diwani Momin | H 891.4301 DWA V.1 Dwarika Prasad Maheshwari rachanawali | H 891.4301 DWA V.2 Dwarika Prasad Maheshwari rachanawali |
जब एक खामोश-सी नीली ‘वादी’ में एक शायर को किसी के क़दमों की आहट सुनाई पड़ती है, किसी के साँसों की खुशबू उसकी साँसों में घुलती है, हर पहाड़ी से, हर बादल से, हर पेड़ से जब उसे कोई इशारा करता है और बहुत तलाश करने पर भी उसे जब ‘तुम’ नहीं मिलता और वह किसी थके-हारे फुल की तरह हवा के झोंकों के तकिये पे सर रख कर सो जाता है, तब उसे अपने अंदर के पराग की अनुभूति होती है, जैसे मृग को कस्तूरी का इल्म होता है और वह ‘मैं’ में खो जाता है।
इसी पुरसुकून भरे लम्हे में शायर सवालों में जवाब ढूंढता है और जवाबों में सवाल, कभी तिलिस्म को हकीकत मान बैठता है तो कभी हक़ीक़त को नकार देता है, कभी खुदा से मुहब्बत कर बैठता है और कभी तो खुद को ही खुदा मान लेता है। इसी ‘तुम’, ‘मैं’ और खुबसुरत वादियों की सफर आप भी कर सकें इसीलिए ये नज़्मे आपके साथ साझा किया है।
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