Adhunika Bharata ka itihasa
Material type:
- 9789387774445
- H 954.02 LON
Item type | Current library | Call number | Status | Date due | Barcode | Item holds |
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Gandhi Smriti Library | H 954.02 LON (Browse shelf(Opens below)) | Available | 168870 | ||
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Gandhi Smriti Library | H 954.02 LON (Browse shelf(Opens below)) | Available | 168425 |
मुगल साम्राज्य एक इस्लामी तुर्की-मंगोल साम्राज्य था जो 1526 में शुरू हुआ, जिसने 17 वीं शताब्दी के आखिर में और 18 वीं शताब्दी की शुरुआत तक भारतीय उपमहाद्वीप में शासन किया और 19 वीं शताब्दी के मध्य में समाप्त हुआ।
भारत के सामुद्रिक रास्तों की खोज 15वीं सदी के अन्त में हुई, जिसके बाद यूरोपीयों का भारत आना आरंभ हुआ, यद्यपि यूरोपीय लोग भारत के अलावा भी बहुत स्थानों पर अपने उपनिवेश बनाने में सफल हुए, पर इनमें से कइयों का मुख्य आकर्षण भारत ही था। सत्रहवीं शताब्दी के अंत तक यूरोपीय कई एशियाई स्थानों पर अपनी उपस्थिति दर्ज करा चुके थे और अवरहवीं सदी के आरार्ध में वे कई जगहों पर अधिकार भी कर लिए थे, किन्तु उन्नीसवीं सदी में जाकर ही अंग्रेजों का भारत पर एकाधिकार हो पाया था।
19वीं शताब्दी के भारतीय समाज में अनेक कुरीतियां विद्यमान थीं। तत्कालीन हिन्दू समाज में जाति प्रथा के बंधन कठोर हो गए थे। छुआछूत की भावना विद्यमान थी। सती प्रथा एवं बाल हतया का प्रचलन था समाज में अंध विश्वास व रूढ़िवादिता व्याप्त थी। मूर्ति पूजा व धर्म से संबंधित कर्मकाण्ड की प्राधनता थी। सौभाग्य से इसी समय अनेक महान विभूतियों यथा- राजा राममोहन राय, स्वामी दयानंद सरस्वती, स्वामी विवेकानंद, महादेव गोविन्द रानाडे आदि का ध्यान समाज में व्याप्त इन दोषों की ओर गया। अतः इन्होंने समाज में व्याप्त दोषों को दूर करने का बीड़ा उठाया। परिणामस्वरूप सामाजिक तथा धार्मिक सुधार आंदोलनों की बाढ़ सी आ गई। इन महान् सुधारकों के नेतृत्व में अनेकानेक धार्मिक सामाजिक सुधार आंदोलन हुए।
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