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Rajasthan swadhinta sangram ke sakshi: kuch sansmaran (Bharatpur, Alwar, Karoli, Dholpur)

By: Material type: TextTextPublication details: Bikaner, Rajasthan rajya abhilekhagar 2000.Description: 249 pSubject(s): DDC classification:
  • RJ 320.540922 RAJ
Summary: देश की स्वाधीनता में राजस्थान के उन सेनानियों की शौर्य गाथाएं, जिनके ऐतिहासिक योगदान की उपेक्षा अब तक होती आई है, जिनमें अधिकांशत: आँखों देखा हाल बता सकने वाले स्वतन्त्रता संग्राम के साक्षी इन विगत वर्षों में काल कल्लवित होकर स्वर्गीय को श्रेणी में हो गये और अन्य जुझारू सेनानी उम्र के उस मुकाम पर पहुँच चुके हैं, जहाँ स्मृति क्षीण हो जाती है। इतिहास के इन 'गौरव पुब्जों' के प्रति हमारी उपेक्षा और लापरवाही, देश की नव पीढ़ी के तौनिहालों के लिये स्वाधीनता संग्राम के चरित्रांकन से वंचित न रह जाये, इसलिये राजस्थान की विभिन्न रियासतों में जागीरदारों, देशी राजाओं और ब्रिटिश शासकों के तिहरे संघर्ष से जुझने वाले इन लोगों के संस्मरण मौखिक इतिहास परियोजनान्तर्गत उनकी स्वयं की भाषा, शैली एवं स्वर में ध्वनिबद्ध करने का कार्य राज्य अभिलेखागार विगत 25 वर्षों से करता आ रहा है। स्वतंत्रता सेनानियों के संस्मरण उनकी स्वयं की आप बीती हैं। इसमें जो भी मन्तव्य है वह उनका स्वयं का है, उनके स्वयं के आकलन हैं, उनके स्वयं के विश्लेषण हैं। अपने संस्मरणों की धारा में बहते हुए उनके वाक्यों का क्रम टूटता जुड़ता रहा है। यही कारण है कि घटनाओं की निरन्तरता इसमें नहीं मिलेगी और इसे क्रमबद्ध करने का प्रयास भी नहीं किया गया है। उम्र के उस पढ़ाव पर जहाँ इन सेनानियों की उम्र साठोत्तर में हो, बल्कि 85 वर्ष के आसपास तक हो तो स्मृति क्षीणता स्वाभाविक है। इसे बनाये रखते हुए घटनाक्रम को यथार्थ रूप प्रदान करने के लिये सही नाम, सन्, स्थान या घटना को इंगित करने का प्रयास किया गया है। किसी स्वतंत्रता सेनानी ने किन्हीं शब्दों को देशज में अथवा अपने बोलने के विशिष्ट अन्दाज या विशिष्ट शब्दों को बार-बार वाक्य जोड़ने में प्रयोग किया है तो उसके मूल स्वरूप को बना रहने देकर उनके संस्मरणों की मौलिकता को बनाये रखा गया है इसी कारण 'वहाँ के' स्थान पर 'महा', यहाँ के स्थान पर 'यिहाँ', गवर्नमेंट के स्थान पर 'गोरमेंट' या 'गर्वमेंट', 'ले आया' के स्थान 'लिआया', 'लाश' के स्थान पर 'ल्हास' जैसे उनके उच्चारित मूल शब्दों के आत्मकथ्य को यथावत रखा गया है। कुछ स्वतंत्रता सेनानियों की स्मृति में सम्पूर्ण घटनाक्रम इतना स्पष्ट रहा है कि उनके संस्मरणों का फलक अत्यन्त विस्तृत है, जबकि कुछ सेनानियों के कतिपय कार्यों या स्मृति-विभ्रम से संस्मरणों का लघु रूप ही संकलित हो पाया है। इसी प्रकार अनेकानेक कारणों से कुछ स्वतंत्रता सेनानियों के संस्मरण अभी भी प्रतीक्षा में है। लगभग पाँच वर्ष पूर्व जन आन्दोलन माला क्रम में प्रथम पुष्य रूप में उदयपुर, इंगरपुर एवं बाँसवाड़ा परिक्षेत्र के स्वतंत्रता सेनानियों के संस्मरणों का प्रकाशन किया गया था, जिसे बहुत सराहना भी मिली। राजस्थान के एकीकरण (राजस्थान निर्माण) की स्वर्ण जयन्ती के अवसर पर इस ग्रंथमाला का द्वितीय पुष्प प्रकाशित किया जा रहा है, यह भरतपुर, अलवर करौली व धौलपुर परिक्षेत्र से सम्बन्धित है। इस परिक्षेत्र में गतिशील रही तत्कालीन राजनैतिक गतिविधियों के सन्दर्भ व्यक्तिशः साक्ष्य रूप में वर्णित है।
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Jan aandolan granthmala- Dwthiye pushp

देश की स्वाधीनता में राजस्थान के उन सेनानियों की शौर्य गाथाएं, जिनके ऐतिहासिक योगदान की उपेक्षा अब तक होती आई है, जिनमें अधिकांशत: आँखों देखा हाल बता सकने वाले स्वतन्त्रता संग्राम के साक्षी इन विगत वर्षों में काल कल्लवित होकर स्वर्गीय को श्रेणी में हो गये और अन्य जुझारू सेनानी उम्र के उस मुकाम पर पहुँच चुके हैं, जहाँ स्मृति क्षीण हो जाती है।

इतिहास के इन 'गौरव पुब्जों' के प्रति हमारी उपेक्षा और लापरवाही, देश की नव पीढ़ी के तौनिहालों के लिये स्वाधीनता संग्राम के चरित्रांकन से वंचित न रह जाये, इसलिये राजस्थान की विभिन्न रियासतों में जागीरदारों, देशी राजाओं और ब्रिटिश शासकों के तिहरे संघर्ष से जुझने वाले इन लोगों के संस्मरण मौखिक इतिहास परियोजनान्तर्गत उनकी स्वयं की भाषा, शैली एवं स्वर में ध्वनिबद्ध करने का कार्य राज्य अभिलेखागार विगत 25 वर्षों से करता आ रहा है।

स्वतंत्रता सेनानियों के संस्मरण उनकी स्वयं की आप बीती हैं। इसमें जो भी मन्तव्य है वह उनका स्वयं का है, उनके स्वयं के आकलन हैं, उनके स्वयं के विश्लेषण हैं।

अपने संस्मरणों की धारा में बहते हुए उनके वाक्यों का क्रम टूटता जुड़ता रहा है। यही कारण है कि घटनाओं की निरन्तरता इसमें नहीं मिलेगी और इसे क्रमबद्ध करने का प्रयास भी नहीं किया गया है।

उम्र के उस पढ़ाव पर जहाँ इन सेनानियों की उम्र साठोत्तर में हो, बल्कि 85 वर्ष के आसपास तक हो तो स्मृति क्षीणता स्वाभाविक है। इसे बनाये रखते हुए घटनाक्रम को यथार्थ रूप प्रदान करने के लिये सही नाम, सन्, स्थान या घटना को इंगित करने का प्रयास किया गया है।

किसी स्वतंत्रता सेनानी ने किन्हीं शब्दों को देशज में अथवा अपने बोलने के विशिष्ट अन्दाज या विशिष्ट शब्दों को बार-बार वाक्य जोड़ने में प्रयोग किया है तो उसके मूल स्वरूप को बना रहने देकर उनके संस्मरणों की मौलिकता को बनाये रखा गया है इसी कारण 'वहाँ के' स्थान पर 'महा', यहाँ के स्थान पर 'यिहाँ', गवर्नमेंट के स्थान पर 'गोरमेंट' या 'गर्वमेंट', 'ले आया' के स्थान 'लिआया', 'लाश' के स्थान पर 'ल्हास' जैसे उनके उच्चारित मूल शब्दों के आत्मकथ्य को यथावत रखा गया है।

कुछ स्वतंत्रता सेनानियों की स्मृति में सम्पूर्ण घटनाक्रम इतना स्पष्ट रहा है कि उनके संस्मरणों का फलक अत्यन्त विस्तृत है, जबकि कुछ सेनानियों के कतिपय कार्यों या स्मृति-विभ्रम से संस्मरणों का लघु रूप ही संकलित हो पाया है। इसी प्रकार अनेकानेक कारणों से कुछ स्वतंत्रता सेनानियों के संस्मरण अभी भी प्रतीक्षा में है। लगभग पाँच वर्ष पूर्व जन आन्दोलन माला क्रम में प्रथम पुष्य रूप में उदयपुर, इंगरपुर एवं बाँसवाड़ा परिक्षेत्र के स्वतंत्रता सेनानियों के संस्मरणों का प्रकाशन किया गया था, जिसे बहुत सराहना भी मिली।

राजस्थान के एकीकरण (राजस्थान निर्माण) की स्वर्ण जयन्ती के अवसर पर इस ग्रंथमाला का द्वितीय पुष्प प्रकाशित किया जा रहा है, यह भरतपुर, अलवर करौली व धौलपुर परिक्षेत्र से सम्बन्धित है। इस परिक्षेत्र में गतिशील रही तत्कालीन राजनैतिक गतिविधियों के सन्दर्भ व्यक्तिशः साक्ष्य रूप में वर्णित है।

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