Rajasthan swadhinata sangram ke sakshi : swatantrta senaniyo k sansmaran pr aadharit (Jodhpur, Aanchal-Paali, Jodhpur, Falodi)
Material type:
- 9788190921930
- RJ 320.540922 RAJ
Item type | Current library | Call number | Status | Date due | Barcode | Item holds |
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Gandhi Smriti Library | RJ 320.540922 RAJ (Browse shelf(Opens below)) | Available | 172109 |
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अंग्रेजी राज्य की स्थापना के साथ भारत प्रशासनिक दृष्टि से ब्रिटिश भारत और रियासती भारत में विभक्त हो गया था। रियासतों में भी परस्पर सम्बन्ध स्थापित करने पर पाबन्दी थी। ब्रिटिश कूटनीति के कारण रियासती जनता मूल राष्ट्रीय धारा से अलग हो गई थी। महात्मा गांधी के नेतृत्व में गतिशील आन्दोलनों से राजस्थान की रियासतों में भी जाग्रति उत्पन्न हुई। किन्तु राजस्थान की जनता के लिए अपने राज्य में स्वतन्त्र राजनैतिक संगठन की स्थापना और अधिकारों की प्राप्ति करना सरल कार्य नहीं था। उसे अत्यन्त कठिन संघर्ष करना पड़ा। यहां के कर्मठ देशभक्तों ने देश की स्वतन्त्रता के लिए अपनी रियासतों में विभिन्न संगठनों, प्रचार प्रसार, जनगोष्ठी आदि के माध्यम से जन-आन्दोलनों को गतिशील करने में अपूर्व साहस, त्याग और बलिदान का परिचय दिया। ब्रिटिश शासन से मुक्ति के पश्चात् इन देशभक्तों को वृहद् राजस्थान के निर्माण में भी बहुत संघर्ष करना पड़ा। राजपूताना एजेन्सी की अधिकतर रियासतें अपना पृथक् अस्तित्व बनाये रखने योग्य नहीं थी। यहां राजाओं में ऐतिहासिक और अन्य कारणों से एक-दूसरे के प्रति अविश्वास और ईर्ष्या की भावनायें विद्यमान् थी, तो दूसरी ओर जनता राजाओं द्वारा किये गये प्रयत्नों में स्वयं को विश्वास में न लेने के कारण उदासीन थी। इसके उपरान्त भी विविध राजनीतिक संगठन स्वतंत्र रूप से बृहद् राजस्थान के निर्माण के लिए प्रयत्न करते रहे। फलस्वरूप अनेक मत-मतान्तर होने से कई आन्दोलन हुए। अन्ततः मत्स्य संघ का निर्माण, उसके बाद संयुक्त राजस्थान का निर्माण, मत्स्य संघ का विलय और तत्पश्चात् अजमेर के विलय के साथ राजस्थान निर्माण की जो प्रक्रिया मार्च, 1947 से प्रारम्भ हुई, वह 1 नवम्बर, 1956 को वृहद् राजस्थान बनने के साथ पूर्ण हुई। स्वतंत्रता के लिये अपने प्राणों का उत्सर्ग करने वाले, स्वतंत्रता के पूर्व और स्वतंत्रता के बाद वृहद् राजस्थान निर्माण तक हुए आन्दोलनों में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप में अद्वितीय भूमिका वहन करने वाले इन सभी वीर सेनानियों के प्रति हम कृतज्ञ हैं। इन सभी के शौर्य-बलिदान से वर्तमान और आगामी पीढ़ी को परिचित कराना हमारा कर्तव्य भी है।
राजस्थान राज्य अभिलेखागार, बीकानेर द्वारा मौखिक इतिहास सन्दर्भ संकलन योजनान्तर्गत इसी पुनीत उद्देश्य को लेकर विभिन्न रियासतों के स्वतन्त्रता सेनानियों के संस्मरणों को उनकी स्वयं की वर्ण्य-विधा और आवाज में ध्वनिबद्ध करने की योजना प्रारम्भ की गई। यह योजना शोधादि के कई आयाम प्रस्तुत करने में भी सक्षम है। विभाग कर्मियों के परिश्रम और कार्यनिष्ठा के परिणामस्वरूप 246 स्वतन्त्रता सेनानियों के संस्मरण ध्वनिबद्ध हुए, जो ऑडियो कैसेट्स में संरक्षित हैं। वर्तमान में भी विभाग इस लक्ष्य की अभिवृद्धि के प्रति क्रियाशील है। इन संस्मरणों को चिरस्थाई बनाने की दृष्टि से इनकी सी.डी. एवं हार्ड डिस्क तैयार कराई गई है और जन-आन्दोलन ग्रंथमाला शृंखला के अन्तर्गत इन्हें अंचलानुसार पुस्तक रूप में प्रकाशित कराने की योजना का क्रियान्वयन किया गया है। अद्यावधि उदयपुर, अजमेर, भरतपुर और हाड़ौती अंचल की चार पुस्तकों का प्रकाशन विभाग द्वारा किया जा चुका है पंचम पुष्प 'राजस्थान स्वाधीनता संग्राम के साक्षी' (स्वतन्त्रता सेनानियों के संस्मरणों पर आधारित) जोधपुर अंचल-पाली, सिरोही, जोधपुर, फलौदी, सुधि
पाठकों एवं जिज्ञासुओं की सेवा में प्रस्तुत है। उल्लेखनीय है कि स्वतन्त्रता आन्दोलन में राजस्थान की सबसे बड़ी रियासत जोधपुर का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा था। यहां के देशभक्तों ने महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू, डॉ. पट्टाभि सीतारमैया आदि राष्ट्रीय नेताओं की विचारधाराओं का अनुसरण और मार्गदर्शन लेकर अटूट साहस, पराक्रम एवं उत्कट देशभक्ति परिचय दिया। यहां मारवाड़ लोक परिषद और राज्य के मध्य संघर्ष, उत्तरदायी शासन की मांग, सत्याग्र दौर, परिषद के कार्यकर्ताओं और जागीरदारों के मध्य तनाव, पहला और द्वितीय बम काण्ड और भूख आदि अनेक घटनायें निरन्तर घटित होती रहीं। इन सभी आन्दोलनों में यहां के साहसी व्यक्तियों ने प्राण अपने कर्तव्य का निर्वहन किया और जनता को परतन्त्रता और पाशविक अत्याचारों से मुक्ति दिलाने में दर भूमिका निभाई। इस पुस्तक में इन निडर, जांबाज, साहसी व्यक्तियों के प्रेरणास्पद 32 संस्मरण है, जो 1921 ई. से सन् 1949 तक के जोधपुर के गतिशील आन्दोलनों पर प्रकाश डालते हैं।
यहां स्पष्ट करना उचित होगा कि इन संस्मरणों का अभिलेखागार मात्र संकलनकर्ता है। प्रत्येक संपन द्वारा वर्णित तथ्य उनके व्यक्तिगत हैं, जिनकी प्रामाणिकता उनके संस्मरणों को लिपिबद्ध की गई पत्रावलियों मे उनके अभिस्वीकृत हस्ताक्षर रूप में उपलब्ध हैं। पूर्व के प्रकाशनों में इन संस्मरणों को यथावत प्रकाशित क गया। वक्ता ने जो कहा, उसे प्रस्तुत कर दिया गया। इसका अपना अलग महत्त्व भी है। किन्तु यह अनुष्य किया गया कि इन संस्मरणों में वक्ता की शारीरिक अवस्था, उम्र या अन्य कारण से घटनाओं के वर्णन के तारतम्यता का अभाव, पुनरावृत्ति, उतार-चढ़ाव, विस्मरण आदि त्रुटियां दृष्टिगत होती हैं, जो क्रमबद्धता के प्रभावित करती हैं। अतः इस पुस्तक में यह प्रयास किया गया है कि पाठकों के समक्ष इन संस्मरणों के विका और सम्पूर्ण विवरण क्रमबद्ध रूप में सामने आये, जिससे रोचकता के साथ सही तथ्यों का ज्ञान हो सके। किन वक्ता की भावना और उसके वक्तव्य के तथ्य में किसी भी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं किया गया है। इस सेनानियों के वक्तव्य और प्राप्त इतिहास में ऐक्य या विरोध से भी हमारा कोई सरोकार नहीं है, यह शोधार्थियों का शोध-विषय है।
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