Devbhumi ka rahsaya Uttarakhand ke teerath-mandir
Material type:
- UK 294.5 PUR
Item type | Current library | Call number | Status | Date due | Barcode | Item holds |
---|---|---|---|---|---|---|
![]() |
Gandhi Smriti Library | UK 294.5 PUR (Browse shelf(Opens below)) | Available | 168301 |
Browsing Gandhi Smriti Library shelves Close shelf browser (Hides shelf browser)
![]() |
![]() |
![]() |
No cover image available No cover image available |
![]() |
![]() |
![]() |
||
UK 070.4 RAY Uttarakhand mein patrkarita ka vikash | UK 079.5451 GAU Uttarakhand ki vartamaan patrakarita | UK 080 BAD Bhed kholegi baat hi | UK 294.5 PUR Devbhumi ka rahsaya Uttarakhand ke teerath-mandir | UK 305.405451 JAN Uttarakhand ki niyikayen: pahad si jiveetha smete (1947 tak) | UK 305.405451 JAN Swatantryoutar Uttarakhand me mahilayen ki bhumika (Uttarakhand andolan ke vishesh sandarbh me) | UK 305.408 CHA Uttarakhand mahila bhumika ka itihas |
देवभूमि का तात्पर्य प्रायः उस स्थान से लिया जाता है, जहां पर देवताओं द्वारा तपस्या की गयी हो या जिस भूमि में देवताओं का अवतरण हुआ हो, लेकिन यह इसका वास्तविक अर्थ नहीं प्रतीत होता । वास्तव में देवभूमि का तात्पर्य उस स्थान से है जहां देवत्त्व की प्राप्ति होती है।
देवता, ऋषि-मुनि और मनुष्य तीन अवस्थाएं हैं। मनुष्य यदि जीतेन्द्रिय होकर धर्म के मार्ग पर चलता है तो वह काम, क्रोध, मद, मोह, लोभ और अहंकार से मुक्त, निर्विकार दिव्यता को प्राप्त होकर ब्रह्माण्ड के दिव्य रहस्यों को देखने लग जाता है। तब वह 'मन्त्र द्रष्टार' की स्थिति प्राप्त कर लेता है, इसलिए उसे ऋषि कहते हैं। जो देखा उस पर मनन किया अथवा परमात्मा की सत्ता का सतत मनन करने का नाम 'मुनि' है। देवता इससे आगे की स्थिति है, जिसमें ऋषि-मुनि गुणातीत हो जाते हैं, जब वे 'साक्षी चेता केवलोनिर्गुणस्य' की स्थिति को प्राप्त करते हैं, अर्थात गुणातीत हो जाते हैं तब वे देवता कहलाते हैं। वेदों में वही ऋषि-मुनि हैं और प्रकारान्त से वही देवता भी हैं।
जैसे जल की तीन अवस्थाएं ठोस द्रव और गैस हैं, ऐसी ही जीव की भी चेतन योनि में तीन अवस्थाएं हैं- मनुष्य, ऋषि और देवता प्रकारान्त से वही आत्म तत्त्व तीनों रूपों में है। मनुष्य के रूप में वह त्रिगुणमयी माया में बुरी तरह घिरा है। ऋषि-मुनि के रूप में वह धर्म के मार्ग पर चल कर योग के द्वारा माया के बन्धनों को काट कर सिद्धि रूपी साधनों से अमरत्व को प्राप्त कर लेता है, लेकिन जब वह समस्त प्रकार से गुणातीत हो जाता है तो तब वह देवता हो जाता है। यह कठिन और लम्बा रास्ता एक ही जन्म में भी तय हो सकता है और यहां तक पहुंचने में कई जन्म भी लग सकते हैं। या फिर ऐसा भी हो सकता है कि जीव गिरकर फिर 84 लाख योनियों के चक्कर काटते रहे। यह मनुष्य के पुरुषार्थ पर निर्भर है।
There are no comments on this title.