Himalay ki lokdevi jhalimali
Material type:
- 9789386452191
- UK 891.4303 KUK
Item type | Current library | Call number | Status | Date due | Barcode | Item holds |
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Gandhi Smriti Library | UK 891.4303 KUK (Browse shelf(Opens below)) | Available | 168303 |
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हिमालय ने हिमालयी क्षेत्र के लोक में धर्म भावना, आस्था और विश्वास की भावना को प्राकृतिक रूप से स्थापित किया है। हिमालय के प्रति यहाँ के लोगों का देवत्व का भाव जन्म-जन्मांतर से रहा, क्योंकि जिस दुर्गम प्रकृति के साथ लोक रह रहा है, लोक की उसमें आस्था होना स्वाभाविक है। हिमालयी क्षेत्र के केदारखंड और मानसखंड की बात करें तो यहाँ का सब कुछ हिमालय से जुड़ा है। यहाँ जीवन में जल और जंगल का पक्ष लोक से जुड़ता है और ये सब कुछ हिमालय से जुड़े हैं।
हिमालयी क्षेत्र में देवी-देवताओं का आवास हिमालय रहा, इसीलिए यहाँ की सब देव पूजाओं के बाद देवताओं को कैलाश पहुँचाने की परम्परा लोक में आज भी विद्यमान है। इस दुर्गम क्षेत्र में मानव रूप धारण कर विलक्षण कार्य करने वाली विभूतियों को देव स्वरूप मानकर उन्हें देवता बना देने का इतिहास भी इस मध्य हिमालयी क्षेत्र का रहा है। लोक के यही देवता खेत्रपाल / क्षेत्रपाल और भूम्याल देवता के रूप में थरपे गए। इन भूम्याल खेत्रपाल देवताओं पर लोक की जो श्रद्धा होती है, वही श्रद्धा लोक धर्म है।
उत्तराखंडी लोकसमाज में लोकधर्म की जो भावना रही उसी भावना से लोक देवताओं के प्रति लोगों की आस्था बढ़ी और इसी आस्था ने शास्त्र सम्मत धर्म के साथ-साथ लोक धर्म को भी पारम्परिक रूप से स्थापित किया। यह सब ठीक उसी तरह हुआ जिस तरह से सनातन धर्म में मूर्ति पूजा से अभीष्ठ का सुफल प्राप्त करने की ताकत व्यक्ति अपने में संचित करता है। उसी तरह लोक देवता पर किये गए विश्वास के आधार पर अपनी पूरी ऊर्जा से अपनी मनौती की प्राप्ति भी करता है।
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