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Rudri: garhwali novel

By: Material type: TextTextPublication details: Dehradun Samay sakshay 2018Description: 104 pISBN:
  • 9789388165099
Subject(s): DDC classification:
  • UK DAN K
Summary: 'रुद्री' गढ़वाळी का सिद्धकवि कन्हैयालाल डंडरियाल को लघु उपन्यास छ, जु वूंका छैद अप्रकाशित छ्यो अर अब वूंका स्वर्गवास का 14 वर्ष बाद प्रकाशित ह्वे सकणू छ। ये उपन्यास मा डंडरियाल जीन् 'शिव-सती' का पौराणिक आख्यान की आज का सत्ता-विमर्श अर वर्ग-संघर्ष की पृष्ठभूमि मा ठेठ गढ़वाळी परिवेश मा पुनर्रचना करे। एक तरफ समाज का तमाम मेहनतकश शोषित, पद्दलित, बहिष्कृत-तिरस्कृत, असहाय- निराश्रित, सतायां-पितायां तबका छन, जु कुलहीन, जातिहीन, महायोगी रुद्र या शिव (प्रेम से शिबु या शिवा) का नेतृत्व मा सहज संगठित होणा छन, त दुसरा तरफ ब्रह्मा, इंद्र, विष्णु, वृहस्पति, दक्ष आदि प्रबल सत्ताधारी छन जु शोषितु का ये संगठन तैं अपणी सत्ता का वास्ता खतरा मानदन अर कै न कै तरीका से शिव फर खुटळी लगाण चाहंदन। यांका वास्ता शिब को ब्यो कराण की चाल चले जांद। द्यबत का षडयंत्र से दक्ष की सबसे गुणत्यळी हुणत्यळी निकणसी नौनी सती को ब्यो शिव दगड़ कराये जांद। मगर सती (शक्ति) को साथ पैकि शिव की ताकत हौर भी बढदा जांद अर आखिर मा वो दिन भी आंद कि जब अहंकारी दक्ष प्रजापति का महत्वाकांक्षी यज्ञ मा द्विया पक्षु की टक्कर ह्वे जांद। यज्ञ मा शिव को हिस्सा नि देखिकि सती रुष्ट हवे जांद अर वखि हवनकुंड मा आत्मदाह कैरि देंद। रुद्रगण खाँकार बणिकि यज्ञ विध्वंस कैरि देंदन। भारी ल्वे-खतरी हवे जांद। दक्ष मरे जांद। द्यबत की भजणी-भाज हवे जांद। लेकिन आखिर मा ब्रह्मा, विष्णु आदि ठुला द्यबतों का बीच-बचाव से द्विया पक्षु मा समझौता हवे जांद, जै मा शिव तैं वैदिक पूजा मा स्थान दिए जाणा की अर शिवगणु तैं यज्ञ मा हिस्सा दिए जाणा की बात मने जांद ।
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'रुद्री' गढ़वाळी का सिद्धकवि कन्हैयालाल डंडरियाल को लघु उपन्यास छ, जु वूंका छैद अप्रकाशित छ्यो अर अब वूंका स्वर्गवास का 14 वर्ष बाद प्रकाशित ह्वे सकणू छ। ये उपन्यास मा डंडरियाल जीन् 'शिव-सती' का पौराणिक आख्यान की आज का सत्ता-विमर्श अर वर्ग-संघर्ष की पृष्ठभूमि मा ठेठ गढ़वाळी परिवेश मा पुनर्रचना करे। एक तरफ समाज का तमाम मेहनतकश शोषित, पद्दलित, बहिष्कृत-तिरस्कृत, असहाय- निराश्रित, सतायां-पितायां तबका छन, जु कुलहीन, जातिहीन, महायोगी रुद्र या शिव (प्रेम से शिबु या शिवा) का नेतृत्व मा सहज संगठित होणा छन, त दुसरा तरफ ब्रह्मा, इंद्र, विष्णु, वृहस्पति, दक्ष आदि प्रबल सत्ताधारी छन जु शोषितु का ये संगठन तैं अपणी सत्ता का वास्ता खतरा मानदन अर कै न कै तरीका से शिव फर खुटळी लगाण चाहंदन। यांका वास्ता शिब को ब्यो कराण की चाल चले जांद।

द्यबत का षडयंत्र से दक्ष की सबसे गुणत्यळी हुणत्यळी निकणसी नौनी सती को ब्यो शिव दगड़ कराये जांद। मगर सती (शक्ति) को साथ पैकि शिव की ताकत हौर भी बढदा जांद अर आखिर मा वो दिन भी आंद कि जब अहंकारी दक्ष प्रजापति का महत्वाकांक्षी यज्ञ मा द्विया पक्षु की टक्कर ह्वे जांद। यज्ञ मा शिव को हिस्सा नि देखिकि सती रुष्ट हवे जांद अर वखि हवनकुंड मा आत्मदाह कैरि देंद। रुद्रगण खाँकार बणिकि यज्ञ विध्वंस कैरि देंदन। भारी ल्वे-खतरी हवे जांद। दक्ष मरे जांद। द्यबत की भजणी-भाज हवे जांद। लेकिन आखिर मा ब्रह्मा, विष्णु आदि ठुला द्यबतों का बीच-बचाव से द्विया पक्षु मा समझौता हवे जांद, जै मा शिव तैं वैदिक पूजा मा स्थान दिए जाणा की अर शिवगणु तैं यज्ञ मा हिस्सा दिए जाणा की बात मने जांद ।

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