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Palayan se pehle

By: Material type: TextTextPublication details: Dehradun Samay sakshay 2018Description: 133 pISBN:
  • 9789388165006
Subject(s): DDC classification:
  • UK 891.4301 KAR
Summary: मातृभाषाएं अपनी विलुप्ति के खिलाफ संघर्षरत हैं। ऐसे में हिमाल की आवाज, अनिल कार्की की कविताएं यह महसूस कराती हैं कि जमीन से जुड़ी भाषाएं दुनिया से क्या कहना चाहती हैं? ये कविताएं अपनी हथेलियों की रगड़ से जीवन में ताप पैदा करती हैं। तथाकथित सभ्य समाज को बताती हैं कि जिन्हें वह अंधविश्वास मानता है उनके पास भी खुद को देखने का नज़रिया है। कवि ने बहुत खूबसूरती से उस नज़रिए को अपनी कविताओं में उकेरा है। यह रेखांकित करते हुए कि सच उतना नहीं होता जितना वर्चस्व की भाषाएं हमें बताती हैं। ये कविताएं अपनी मृत्यु को नकार कर अंतिम सांस तक लड़ने वाली हिमाल की वह भाषा है, जो अपनी माटी की खुशबू के साथ उसकी पीड़ा भी लेकर आती है। सच को देख पाने के लिए विशाल छद्म को ये कविताएं देखने का सच्चा नज़रिया देती हैं। ये इस समय की सबसे महत्वपूर्ण कविताएं हैं। इन कविताओं में थोड़ा-थोड़ा बहुत कुछ है और बहुत कुछ अपने भीतर थोड़ा-थोड़ा सब कुछ समेटे हैं। थोड़ी सी ईजा, थोड़ी सी बहनें हैं और भीतर पिता पूरे बच गए हैं। धार की औरतें, पुरखों की आत्माएं और उनकी दुनिया, पहाड़, नदी और पूरा हिमाल थोड़ा-थोड़ा आकर पूरी कविता में पसर गया है। ये हमारे भीतर दफ्न हो रही बहुत सी स्मृतियों को जिंदा करती है। फिर हम थोड़ा-थोड़ा मगर कुछ ज्यादा जीवित महसूस करते हैं।
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Books Books Gandhi Smriti Library UK 891.4301 KAR (Browse shelf(Opens below)) Available 168343
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मातृभाषाएं अपनी विलुप्ति के खिलाफ संघर्षरत हैं। ऐसे में हिमाल की आवाज, अनिल कार्की की कविताएं यह महसूस कराती हैं कि जमीन से जुड़ी भाषाएं दुनिया से क्या कहना चाहती हैं? ये कविताएं अपनी हथेलियों की रगड़ से जीवन में ताप पैदा करती हैं। तथाकथित सभ्य समाज को बताती हैं कि जिन्हें वह अंधविश्वास मानता है उनके पास भी खुद को देखने का नज़रिया है। कवि ने बहुत खूबसूरती से उस नज़रिए को अपनी कविताओं में उकेरा है। यह रेखांकित करते हुए कि सच उतना नहीं होता जितना वर्चस्व की भाषाएं हमें बताती हैं।

ये कविताएं अपनी मृत्यु को नकार कर अंतिम सांस तक लड़ने वाली हिमाल की वह भाषा है, जो अपनी माटी की खुशबू के साथ उसकी पीड़ा भी लेकर आती है। सच को देख पाने के लिए विशाल छद्म को ये कविताएं देखने का सच्चा नज़रिया देती हैं। ये इस समय की सबसे महत्वपूर्ण कविताएं हैं।

इन कविताओं में थोड़ा-थोड़ा बहुत कुछ है और बहुत कुछ अपने भीतर थोड़ा-थोड़ा सब कुछ समेटे हैं। थोड़ी सी ईजा, थोड़ी सी बहनें हैं और भीतर पिता पूरे बच गए हैं। धार की औरतें, पुरखों की आत्माएं और उनकी दुनिया, पहाड़, नदी और पूरा हिमाल थोड़ा-थोड़ा आकर पूरी कविता में पसर गया है। ये हमारे भीतर दफ्न हो रही बहुत सी स्मृतियों को जिंदा करती है। फिर हम थोड़ा-थोड़ा मगर कुछ ज्यादा जीवित महसूस करते हैं।

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