Pahad ki subah tatha anay kahaniya
Material type:
- 9788186810129
- UK PAN S
Item type | Current library | Call number | Status | Date due | Barcode | Item holds |
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Gandhi Smriti Library | UK PAN S (Browse shelf(Opens below)) | Available | 168359 |
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इस संकलन की कहानियाँ किसी विशेष कालखंड की रचनाएँ नहीं हैं। ये कई कालखंडों में रची गई हैं और इनमें भाषा-शिल्प की भिन्नताएँ देखी जा सकती हैं। संकलित सभी कहानियाँ देश की अनेक महत्वपूर्ण पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं। ये स्थान - सापेक्ष नहीं हैं। इनमें उन संकटों को देखने की कोशिश है, जिन्हें इस महादेश का सामान्य आदमी झेल रहा है। कहानियों का चयन किसी विशेष टीस से नहीं, विविधता के आधार पर किया गया है। जब हमने पहाड़ छोड़ा था, तब हम बहुत छोटे थे और अब जब पहाड़ लौटे तो बहुत सयाने हो गये थे। इतने कि दादी चश्मा साफ़ करके बहुत देर तक हमें अपनी आँखों से टटोलती रही फिर भी उसे विश्वास नहीं हुआ कि हम बिज्जु और बिन्नी हैं। यूँ अब हम बिज्जु और बिन्नी रह भी नहीं गए थे। मैं विजय थपलियाल था और बिन्नी मिस विनीता थपलियाल पापा ने जब जोर देकर बताया कि ये बिज्जु और बिन्नी हैं, तो दादी ने हमें अपनी बाँहों में जकड़ लिया और रोने लगी।
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