Dariya paar ka shahar
Material type:
- 9789388165419
- UK AGR R
Item type | Current library | Call number | Status | Date due | Barcode | Item holds |
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Gandhi Smriti Library | UK AGR R (Browse shelf(Opens below)) | Available | 168385 |
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सन् 1947 में देश विभाजन के समय इतनी संवेदनशीलता के साथ, इतना सहज और सजीव वर्णन जैसा कि इस किताब में मिला, शायद ही कहीं और देखा हो। जिस वाह कैम्प का वर्णन इस किताब में दिया गया है, उसी 'वाह कैम्प' के नाम से द्रोणवीर कोहली के प्रसिद्ध उपन्यास को भी मैंने पढ़ा है। उस में भी उन दंगों का मार्मिक चित्रण है, लेकिन 'दरिया पार का शहर' में कुछ अलग ही बात है। इसमें कुछ लेखकीय भाषा का चमत्कार तो चाहे नहीं, लेकिन घटनाक्रम कुछ इस तरह से वर्णित है कि सीधा दिल में उतरता जाता है। यह इतना हृदय विदारक और रोंगटे खड़े कर देने वाला है कि आश्चर्य होता है कि एक तेरह वर्ष के किशोर ने कैसे इतना सब कुछ झेला और अपनी सोच को इतना सहज और सकारात्मक बनाए रखा।
जैसा कि लेखक ने स्वयं ही किताब के विषय में लिखा है, उपन्यास का जो कि पाकिस्तान से भारत पहुँचने तक का है, पूरी तरह यथार्थ पर आधारित है और उससे आगे का भाग काल्पनिक है। ऐसा पढ़ने से ही नज़र आने लगता है। दरअसल, पहला भाग ही इस उपन्यास की जान है, उसकी विशेषता है। उसे पढ़कर लगता है इसे सबको पढ़ना चाहिए और अन्य भाषाओं में भी छपना चाहिए।
इस उपन्यास का अगला भाग जिसमें कि पाकिस्तान से भारत पहुँच जाने की कहानी है, वह भी कम दिलचस्प नहीं। उसमें यथार्थ वाली तीखी धार भले ही न हो, पाठक को बांधे रखने की क्षमता बनी रहती है। एक लगभग अनाथ लड़के के संघर्षों की, और उसके दिल में पलते किसी के लिए मासूम प्यार की दास्तान, अपनी ही तरह की है।
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