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Uttarakhand mein patrkarita ka vikash

By: Material type: TextTextPublication details: Dehradun, Samay sakshya 2017.Description: 205 pISBN:
  • 978-93-86452-21-4
Subject(s): DDC classification:
  • UK 070.4 RAY
Summary: वर्तमान युग मीडिया का है। आज पत्रकारिता एवं जनसंचार विषय एक महत्वपूर्ण व्यावहारिक व व्यावसायिक विषय के रूप में उभर के सामने आया है। इस दौर में विषय में प्रशिक्षण ले रहे या अध्ययनरत छात्रों के लिए इस तरह की पुस्तकें बहुत महत्व रखती हैं। दूसरी तरफ उत्तराखण्ड राज्य जो अभी अपनी विकास की राह सही ढंग से नहीं पकड़ पाया है, ऐसे में राज्य के विकास में मीडिया की क्या भूमिका हो सकती है? यहां के शिक्षित बेरोजगार कैसे मीडिया में अपना रोजगार तलाश सकते हैं? इन सब विषयों पर आधारित यह संदर्भ एवं शोध परक पुस्तक डॉ. राकेश रयाल द्वारा तैयार की गयी है, उनका यह कार्य सराहनीय है। भारतीय स्वाधीनताकाल से लेकर आज तक राष्ट्रनिर्माण के योगदान में उत्तराखण्ड की पत्रकारिता एवं यहां के पत्रकारों का अभूतपूर्व योगदान रहा है, जिसे नजरअंदान नहीं किया जा सकता है। भारतीय स्वाधीनता पूर्व राज्य के प्रमुख पत्रकार श्री विशम्बर दत्त चंदोला, बद्री दत्त पाण्डे, कृपा शंकर मिश्र 'मनहर', भैरव दत्त धूलिया जैसे क्रांतिकारी पत्रकारों ने देश की स्वाधीनता की लड़ाई लड़ने के लिए पत्रकारिता को अपना हथियार चुना। साथ ही उस दौरान गढ़वाल-कुमाऊं में व्याप्त कुरीतियों व अत्याचारों के खिलाफ भी इन पत्रकारों ने पत्रकारिता के माध्यम से जंग लड़ी और विजय प्राप्त की। उत्तराखण्ड राज्य निर्माण को लेकर राज्य से प्रकाशित समाचार पत्र / पत्रिकाओं व राज्य से बाहर विभिन्न प्रतिष्ठित राष्ट्रीय समाचार पत्र-पत्रिकाओं में अपना योगदान दे रहे पत्रकारों ने सभी पत्र / पत्रिकाओं में राज्य निर्माण की मांग को प्राथमिकता से उठाया और इसी का नतीजा रहा कि राज्य निर्माण की मांग समय-समय पर सरकार तक पहुंचती रही। वर्तमान में राज्य के 13 जनपदों से सैकड़ों समाचार पत्र / पत्रिकाएं प्रकाशित हो रही हैं, जिनका जिक्र डॉ० रयाल ने अपनी इस पुस्तक में किया है। राज्य में मीडिया के क्षेत्र में भविष्य बनाने की इच्छा रखने वाले प्रशिक्षित बेरोजगार कैसे मीडिया को अपना रोजगार बना सकते हैं, इस बात का भी पुस्तक में उल्लेख किया गया है। साथ ही स्वतंत्रता से पूर्व राज्य में पत्रकारिता के उददेश्य और वर्तमान में उद्देश्यों का भी तुलनात्मक अध्ययन किया गया है। राज्य के उच्च शिक्षण संस्थानों को इस ओर विचार करना चाहिए कि जिन संस्थानों में मीडिया विषय को पढ़ाया जा रहा हो वे राज्य में पत्रकारिता के इतिहास और भविष्य को भी अपने पाठ्यक्रम में शामिल करें जिससे विषय में प्रशिक्षण लेने वाले विद्यार्थियों को राज्य के मीडिया की स्थिति और क्षेत्र की जानकारी प्राप्त हो सके। अंत में मैं डॉ. राकेश रयाल को आशीर्वाद स्वरूप बधाई देता हूं। कि उन्होंने इस पुस्तक के निर्माण की सोच रखी और तैयार करके मीडिया के विद्यार्थियों के साथ साथ विषय में रुचि रखने वाले पाठकों के सम्मुख यह पठनीय पुस्तक प्रस्तुत की।
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वर्तमान युग मीडिया का है। आज पत्रकारिता एवं जनसंचार विषय एक महत्वपूर्ण व्यावहारिक व व्यावसायिक विषय के रूप में उभर के सामने आया है। इस दौर में विषय में प्रशिक्षण ले रहे या अध्ययनरत छात्रों के लिए इस तरह की पुस्तकें बहुत महत्व रखती हैं। दूसरी तरफ उत्तराखण्ड राज्य जो अभी अपनी विकास की राह सही ढंग से नहीं पकड़ पाया है, ऐसे में राज्य के विकास में मीडिया की क्या भूमिका हो सकती है? यहां के शिक्षित बेरोजगार कैसे मीडिया में अपना रोजगार तलाश सकते हैं? इन सब विषयों पर आधारित यह संदर्भ एवं शोध परक पुस्तक डॉ. राकेश रयाल द्वारा तैयार की गयी है, उनका यह कार्य सराहनीय है।

भारतीय स्वाधीनताकाल से लेकर आज तक राष्ट्रनिर्माण के योगदान में उत्तराखण्ड की पत्रकारिता एवं यहां के पत्रकारों का अभूतपूर्व योगदान रहा है, जिसे नजरअंदान नहीं किया जा सकता है। भारतीय स्वाधीनता पूर्व राज्य के प्रमुख पत्रकार श्री विशम्बर दत्त चंदोला, बद्री दत्त पाण्डे, कृपा शंकर मिश्र 'मनहर', भैरव दत्त धूलिया जैसे क्रांतिकारी पत्रकारों ने देश की स्वाधीनता की लड़ाई लड़ने के लिए पत्रकारिता को अपना हथियार चुना। साथ ही उस दौरान गढ़वाल-कुमाऊं में व्याप्त कुरीतियों व अत्याचारों के खिलाफ भी इन पत्रकारों ने पत्रकारिता के माध्यम से जंग लड़ी और विजय प्राप्त की।

उत्तराखण्ड राज्य निर्माण को लेकर राज्य से प्रकाशित समाचार पत्र / पत्रिकाओं व राज्य से बाहर विभिन्न प्रतिष्ठित राष्ट्रीय समाचार पत्र-पत्रिकाओं में अपना योगदान दे रहे पत्रकारों ने सभी पत्र / पत्रिकाओं में राज्य निर्माण की मांग को प्राथमिकता से उठाया और इसी का नतीजा रहा कि राज्य निर्माण की मांग समय-समय पर सरकार तक पहुंचती रही।

वर्तमान में राज्य के 13 जनपदों से सैकड़ों समाचार पत्र / पत्रिकाएं प्रकाशित हो रही हैं, जिनका जिक्र डॉ० रयाल ने अपनी इस पुस्तक में किया है। राज्य में मीडिया के क्षेत्र में भविष्य बनाने की इच्छा रखने वाले प्रशिक्षित बेरोजगार कैसे मीडिया को अपना रोजगार बना सकते हैं, इस बात का भी पुस्तक में उल्लेख किया गया है। साथ ही स्वतंत्रता से पूर्व राज्य में पत्रकारिता के उददेश्य और वर्तमान में उद्देश्यों का भी तुलनात्मक अध्ययन किया गया है।

राज्य के उच्च शिक्षण संस्थानों को इस ओर विचार करना चाहिए कि जिन संस्थानों में मीडिया विषय को पढ़ाया जा रहा हो वे राज्य में पत्रकारिता के इतिहास और भविष्य को भी अपने पाठ्यक्रम में शामिल करें जिससे विषय में प्रशिक्षण लेने वाले विद्यार्थियों को राज्य के मीडिया की स्थिति और क्षेत्र की जानकारी प्राप्त हो सके।

अंत में मैं डॉ. राकेश रयाल को आशीर्वाद स्वरूप बधाई देता हूं। कि उन्होंने इस पुस्तक के निर्माण की सोच रखी और तैयार करके मीडिया के विद्यार्थियों के साथ साथ विषय में रुचि रखने वाले पाठकों के सम्मुख यह पठनीय पुस्तक प्रस्तुत की।

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