Daxin Bharat mein solah din
Material type:
- 9788192881911
- H 954.548 KAR
Item type | Current library | Call number | Status | Date due | Barcode | Item holds |
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Gandhi Smriti Library | H 954.548 KAR (Browse shelf(Opens below)) | Available | 168340 |
वर्षों तक एक ही जगह में रहने से व्याक्त म यांत्रिकता आ जाती है। एक भयानक तरह की ऊब और उदासी उसे घेरने लगती है। इससे निराशा पैदा होती है। हम खुद को कई तरह के बंधनों से बांधे रहते हैं। यात्रा न सिर्फ उन गाँठों को खोलने का हमें मौका देती है, बल्कि उनको -समझने का नजरिया भी देती है। जीवन की विराटता व्यक्ति से अपनी जड़ता और सीमाओं को तोड़ने का आग्रह करती है। व्यक्ति सोचता कि उसके आस-पास जो दिख रहा है, दु उतनी भर है। वह नहीं जानता कि एक विशाल और बहुविध दुनिया अभी हमारे अनुभव तथा कल्पना से दूर है। मनुष्य अपने यांत्रिक जीवन उपजी चिन्ताओं और एकरसता को ही अपने जीवन का उद्देश्य मान लेता है और यहाँ से वह अवसाद की दुनिया में प्रवेश कर जाता है। जैसे, समय हर पल बदलता रहता उसी प्रकार हमें भी अपने परिवेश तथा स्व का विस्तार करना होता है। यात्रा न सिर्फ हमारे अनुभव को गहरा करती है, बल्कि हमारे भीतर के छोटेपन को बड़ेपन में बदलते चली जाती है। हमारे देखे हुए कस्बे, गाँव, शहर तथा लोग बाहर ही नहीं होते हैं, बल्कि हमारे भीतर भी जगह बनाते चलते हैं। यात्रा हमारी जानकारी का ही विस्तार नहीं करती. हैं, बल्कि हमारे भीतर की ग्रहण करने की शक्ति के बारे में हमें बताती है। इससे हमें वर्तमान की ही खबर नहीं होती, बरन अतीत से भी रू-ब-रू होते हैं। शायद इसीलिए यात्री हमें न सिर्फ वर्तमान से अतीत की ओर ले जाती है, बल्कि तीन ही मन की ओर आने की मोजमी सिखाती है।
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