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Himalayan gazetteer

By: Contributor(s): Material type: TextTextPublication details: Chamoli Uttarakhand Prakashan 2020Edition: 2nd edDescription: 231 pISBN:
  • 8190100130
Subject(s): DDC classification:
  • H 915.4 ATK vol.2 pt.1
Summary: प्राचीन समय में ये लोग उच्छृंखल थे और हियुंग-नु लोगों की शक्ति को कम करके आंकते थे तथा उनके साथ किसी भी प्रकार के समझौते से इनकार करते थे। हियुंग-नु ने आक्रमण कर इन लोगों को करारी मात दी: शेन-यु और लाओ शांग ने उनके राजा को मार डाला और उसके कपाल का सुरा-पात्र बनवाया। पहले युएहति लोग दुन-वांग तथा कि लीन के बीच रहते थे, जब हियुंग-नु लोगों ने इन पर आक्रमण किया तो ये लोग कुछ और दूरी पर चले जाने को बाध्य हुए। । ये लोग दा-वान से गुजरे और पश्चिम की ओर दा हिया पर आक्रमण कर उस पर कब्जा जमा लिया। दु-ग्वाई-शुई के किनारे आगे बढ़ते हुए इन लोगों ने उत्तरी किनारे पर अपने शाही-निवास की स्थापना की। इस जनजाति का एक छोटा सा भाग, जो इनके साथ नहीं हो सका, नान-शान के गियांग लोगों की शरण में चला गया; यह शाखा लघु-युएहति कहलाती है। इन पर्वतों की घाटियों में सिद्धों और चारणों के प्रिय विश्राम स्थल हैं। इनकी ढलानों पर सुरम्य वन और सुंदर नगर हैं, जिनमें दैवी आत्माओं का निवास है। यहां घाटियों में गंधर्व, यक्ष, राक्षस, दैत्य और दानव आमोद-प्रमोद करते हैं। संक्षेप में, यह स्वर्ग-भूमि है, जहां धर्मात्माओं का वास है और जहां पापी सौ जन्म लेकर भी नहीं पहुंच पाते। यहां कोई दुख नहीं है, कोई थकान नहीं, कोई चिन्ता नहीं, न भूख है और न ही भय । समस्त निवासी शारीरिक अक्षमता व कष्टों से मुक्त हैं और निर्बाध सुख से दस बारह हजार वर्षों तक जीवित रहते हैं।
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H 915.4 AGA Bharat ka bhoogol H 915.4 ATK vol.2 pt.1 Himalayan gazetteer H 915.4 ATK vol.2 pt.2 Himalayan gazetteer H 915.4 ATK vol.3 pt.1 Himalayan gazetteer H 915.4 ATK vol.3 pt.2 Himalayan gazetteer H 915.4 BAS Bharat ka bhugol H 915.4 BHA Yatra Chakra

प्राचीन समय में ये लोग उच्छृंखल थे और हियुंग-नु लोगों की शक्ति को कम करके आंकते थे तथा उनके साथ किसी भी प्रकार के समझौते से इनकार करते थे। हियुंग-नु ने आक्रमण कर इन लोगों को करारी मात दी: शेन-यु और लाओ शांग ने उनके राजा को मार डाला और उसके कपाल का सुरा-पात्र बनवाया। पहले युएहति लोग दुन-वांग तथा कि लीन के बीच रहते थे, जब हियुंग-नु लोगों ने इन पर आक्रमण किया तो ये लोग कुछ और दूरी पर चले जाने को बाध्य हुए। । ये लोग दा-वान से गुजरे और पश्चिम की ओर दा हिया पर आक्रमण कर उस पर कब्जा जमा लिया। दु-ग्वाई-शुई के किनारे आगे बढ़ते हुए इन लोगों ने उत्तरी किनारे पर अपने शाही-निवास की स्थापना की। इस जनजाति का एक छोटा सा भाग, जो इनके साथ नहीं हो सका, नान-शान के गियांग लोगों की शरण में चला गया; यह शाखा लघु-युएहति कहलाती है।

इन पर्वतों की घाटियों में सिद्धों और चारणों के प्रिय विश्राम स्थल हैं। इनकी ढलानों पर सुरम्य वन और सुंदर नगर हैं, जिनमें दैवी आत्माओं का निवास है। यहां घाटियों में गंधर्व, यक्ष, राक्षस, दैत्य और दानव आमोद-प्रमोद करते हैं। संक्षेप में, यह स्वर्ग-भूमि है, जहां धर्मात्माओं का वास है और जहां पापी सौ जन्म लेकर भी नहीं पहुंच पाते। यहां कोई दुख नहीं है, कोई थकान नहीं, कोई चिन्ता नहीं, न भूख है और न ही भय । समस्त निवासी शारीरिक अक्षमता व कष्टों से मुक्त हैं और निर्बाध सुख से दस बारह हजार वर्षों तक जीवित रहते हैं।

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