Grameen vyawasthaye
Material type:
- 9789386319685
- H 307.720954 RAT
Item type | Current library | Call number | Status | Date due | Barcode | Item holds |
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Gandhi Smriti Library | H 307.720954 RAT (Browse shelf(Opens below)) | Checked out to Kaveri Hostel OT Lounge (KAVERI) | 2023-09-29 | 168257 |
प्राचीन समय से देखा जाए तो गाँव समुदाय का समाज के लिए सामान्य रूप में एक प्राथमिक इकाई होती है। जिसमें लोगों का जीवन सरल एवं मितव्ययी होता है। उनकी आवश्यकताएँ भी सीमित होती है गाँव का जीवन बहुत सीमा एक स्वावलम्बी होता है। यह समाज की प्राचीन सभ्यता और संस्कृति के रक्षक होते हैं। यहाँ हम ग्रामीण एवं नगरीय जीवन उसकी संरचना एवं उनकी समानताएँ और असमानताएँ पर भी विचार किया गया है। हम जानते है कि भारत को गाँवों का देश कहा जाता है तब यह अध्ययन और भी आवश्यक हो जाता है। प्रस्तुत पुस्तक में भारतीय एवं पश्चिमी गाँवों की तुलनात्मक विश्लेषण प्रस्तुत किया गया है। गाँवों का विकास भारतीय विकास के लिए अनिवार्य तत्व है। जिस दिशा में बेहतर कार्य करना अपेक्षित है।
भारत गाँवों का देश है। भारतीय समाज में जाति एवं वर्ग का स्थान प्रधान रखा गया है जिसमें वर्गों का विभाजन उनके साधन तथा शक्तियों के अनुसार किया जाता है परन्तु वर्ग-व्यवस्था में भी जातिवर्ग को ही सर्वप्रमुख मान्यता प्राप्त हुई है। भारत में इसीलिए अनेकानेक वर्ग और जातियों में बंटा समाज दृष्टिगत होता है इसका वृहत रूप हमें ग्रामीण परिवेश में देखने और समझने को मिलता है।
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