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Thaglife (#metoo)

By: Material type: TextTextPublication details: New Delhi Bharat Pustak 2022Description: 112 pISBN:
  • 9789384754730
Subject(s): DDC classification:
  • H KAU P
Summary: रात भर वह अपमान के साथ साथ अपनी योनी में गड़े सुवीर के नाखूनों के दर्द को झेलती पडी रही, उसके वक्ष पर भी सुवीर के पंजो के निशान काले काले नील के रूप में चमक रहे थे। उसके अलावा बाजू पर दीवार से लगी खरोंच अलग टीस रही थी। मामी ने जो थप्पड़ और धौल उसकी पीठ पर बिना गिनती किये रसीद किये थे उनके घाव तो सीधे उसकी आत्मा पर लगे थे। “नहीं, मैं नहीं जानती प्यार क्या होता है। कम से कम वो प्यार जिसकी बात तुम करती हो । मेरा तो सिर्फ जिस्म ही प्यार समझता है। तुम जिसे आत्मा और मन का प्यार कहती हो वो मेरी किताब में है ही नहीं। मुझे तो कोई प्यार से गले लगाता है तो मेरा जिस्म झनझना उठता है। मैं उत्तेजित हो जाती हूँ, और फौरन संतुष्टि की इच्छा मुझे घेर लेती है।" सविता कॉफी के मग से निकलती भाप को महसूस करती और एक-एक सिप लेती बीच-बीच में अपनी बात कह रही थी। "औरतों ने कभी मुझ पर कोई एहसान किया ही नहीं। मेरी अपनी माँ ने मुझे बेटी होने का हक नहीं दिया, और किसी औरत से मैं क्या उम्मीद करूँ? मेरी मामी ने जो मेरे साथ किया तुम्हें बता चुकी हूँ। औरत मुझे गले लगा भी ले तो मुझे कुछ महसूस नहीं होता। कोई भी किसी भी तरह की भावना नहीं जागती। चाहो तो टेस्ट कर लो, उठो।" एक और ठहाका लगा कर सविता खड़ी हो गयी थी बहि फैलाये रेचल की तरफ.
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रात भर वह अपमान के साथ साथ अपनी योनी में गड़े सुवीर के नाखूनों के दर्द को झेलती पडी रही, उसके वक्ष पर भी सुवीर के पंजो के निशान काले काले नील के रूप में चमक रहे थे। उसके अलावा बाजू पर दीवार से लगी खरोंच अलग टीस रही थी। मामी ने जो थप्पड़ और धौल उसकी पीठ पर बिना गिनती किये रसीद किये थे उनके घाव तो सीधे उसकी आत्मा पर लगे थे।

“नहीं, मैं नहीं जानती प्यार क्या होता है। कम से कम वो प्यार जिसकी बात तुम करती हो । मेरा तो सिर्फ जिस्म ही प्यार समझता है। तुम जिसे आत्मा और मन का प्यार कहती हो वो मेरी किताब में है ही नहीं। मुझे तो कोई प्यार से गले लगाता है तो मेरा जिस्म झनझना उठता है। मैं उत्तेजित हो जाती हूँ, और फौरन संतुष्टि की इच्छा मुझे घेर लेती है।" सविता कॉफी के मग से निकलती भाप को महसूस करती और एक-एक सिप लेती बीच-बीच में अपनी बात कह रही थी।

"औरतों ने कभी मुझ पर कोई एहसान किया ही नहीं। मेरी अपनी माँ ने मुझे बेटी होने का हक नहीं दिया, और किसी औरत से मैं क्या उम्मीद करूँ? मेरी मामी ने जो मेरे साथ किया तुम्हें बता चुकी हूँ। औरत मुझे गले लगा भी ले तो मुझे कुछ महसूस नहीं होता। कोई भी किसी भी तरह की भावना नहीं जागती। चाहो तो टेस्ट कर लो, उठो।" एक और ठहाका लगा कर सविता खड़ी हो गयी थी बहि फैलाये रेचल की तरफ.

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