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Prayojanamulaka Hindi

By: Material type: TextTextPublication details: Jaipur Paradise 2022Description: 250 pISBN:
  • 9789388514835
Subject(s): DDC classification:
  • H 491.431 BAR
Summary: भाषा के स्वरूप पर व्यक्ति, विषय और परिवेश तीनों का प्रभाव होता है जिसका इशारा कुल मिलाकर प्रयोजन की तरफ ही है। प्रयोजन की दृष्टि से भाषा के दो प्रमुख स्वरूप स्वीकार किए जा सकते हैं पहला, वह भाषा जो आदमी अपने रोजमर्रा की जिन्दगी में इस्तेमाल करता है। दूसरा, जिसका उपयोग वह किसी विशेष प्रयोजन या संदर्भों में करता है। पहले रूप की भाषा को सीखने के लिए व्याकरण की कसरत नहीं करनी पड़ती। समाज में रहते हुए इसे एक-दूसरे के साथ उठते-बैठते आसानी से सीखा जा सकता है किन्तु दूसरी रूप वाली भाषा को सीखने के लिए मेहनत करनी पड़ती है। इसमें रूचि एक महत्वपूर्ण कारक है। आवश्यकतावश इसे दबाब में सीखना ही पड़ता है। इसी भाषा को व्यवहार क्षेत्र में प्रयोजनमूलक भाषा कहते हैं। इसकी अपनी विशिष्ट प्रयोजनपरक तकनीकी शब्दावली तथा पदावली होती है। आज प्रयोजनमूलक हिंदी देश के बहुत बड़े फलक और धरातल पर प्रयोग में लाई जा रही है। केन्द्र और राज्य सरकारों के बीच संवादों का पुल स्थापित करने में आज इसकी महती भूमिका को नकारा नहीं जा सकता। आज इसने एक ओर कंप्यूटर, इलेक्ट्रानिक हेलीप्रिंटर, टेलेक्स, तार, दूरदर्शन, रेडियो, डाक, अखबार, फिल्म और विज्ञापन आदि जनसंचार के सभी माध्यमों को अपने लपेटे में ले लिया है तो दूसरी ओर शेयर बाजार, रेल, हवाई जहाज, बीमा उद्योग, बैंक आदि संस्थानों, तकनीकी और वैज्ञानिक क्षेत्रों, आयुर्विज्ञान, कृषि, चिकित्सा, शिक्षा, ए.एम.आई.ई. के साथ विभिन्न संस्थानों में हिंदी माध्यम से प्रशिक्षण दिलाने, कॉलेजों विश्वविद्यालयों, सरकारी- अर्द्ध सरकारी कार्यालयों, चिट्टी-पत्री, लेटर-पैड, स्टॉक-रजिस्टर, लिफाफे,मुहरें, नामपट्ट स्टेशनरी के साथ-साथ कार्यालय ज्ञापन, परिपत्र, आदेश, राजपत्र, अधिसूचना, अनुस्मारक, प्रेस विज्ञप्ति निविदा, अपील, निलामी, पत्र-पावती आदि में यह बहुत आसानी से प्रयोग की जा रही है। इतना ही नहीं, भारत देश के संपूर्ण तीर्थ स्थलों, पर्यटन स्थलों में तो इसके शिष्ट रूप का प्रयोग हो रहा है साथ ही साथ इसने आज बाजार और औद्योगिकता के दबाब के कारण गाँव के हाट-बाजार गली-चौराहे, कल-कारखाने, कचहरी और सब्जी मंडियों में भी अपने आगमन की सूचना और पुकार दे दी है।
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भाषा के स्वरूप पर व्यक्ति, विषय और परिवेश तीनों का प्रभाव होता है जिसका इशारा कुल मिलाकर प्रयोजन की तरफ ही है। प्रयोजन की दृष्टि से भाषा के दो प्रमुख स्वरूप स्वीकार किए जा सकते हैं पहला, वह भाषा जो आदमी अपने रोजमर्रा की जिन्दगी में इस्तेमाल करता है। दूसरा, जिसका उपयोग वह किसी विशेष प्रयोजन या संदर्भों में करता है। पहले रूप की भाषा को सीखने के लिए व्याकरण की कसरत नहीं करनी पड़ती। समाज में रहते हुए इसे एक-दूसरे के साथ उठते-बैठते आसानी से सीखा जा सकता है किन्तु दूसरी रूप वाली भाषा को सीखने के लिए मेहनत करनी पड़ती है। इसमें रूचि एक महत्वपूर्ण कारक है। आवश्यकतावश इसे दबाब में सीखना ही पड़ता है। इसी भाषा को व्यवहार क्षेत्र में प्रयोजनमूलक भाषा कहते हैं। इसकी अपनी विशिष्ट प्रयोजनपरक तकनीकी शब्दावली तथा पदावली होती है।
आज प्रयोजनमूलक हिंदी देश के बहुत बड़े फलक और धरातल पर प्रयोग में लाई जा रही है। केन्द्र और राज्य सरकारों के बीच संवादों का पुल स्थापित करने में आज इसकी महती भूमिका को नकारा नहीं जा सकता। आज इसने एक ओर कंप्यूटर, इलेक्ट्रानिक हेलीप्रिंटर, टेलेक्स, तार, दूरदर्शन, रेडियो, डाक, अखबार, फिल्म और विज्ञापन आदि जनसंचार के सभी माध्यमों को अपने लपेटे में ले लिया है तो दूसरी ओर शेयर बाजार, रेल, हवाई जहाज, बीमा उद्योग, बैंक आदि संस्थानों, तकनीकी और वैज्ञानिक क्षेत्रों, आयुर्विज्ञान, कृषि, चिकित्सा, शिक्षा, ए.एम.आई.ई. के साथ विभिन्न संस्थानों में हिंदी माध्यम से प्रशिक्षण दिलाने, कॉलेजों विश्वविद्यालयों, सरकारी- अर्द्ध सरकारी कार्यालयों, चिट्टी-पत्री, लेटर-पैड, स्टॉक-रजिस्टर, लिफाफे,मुहरें, नामपट्ट स्टेशनरी के साथ-साथ कार्यालय ज्ञापन, परिपत्र, आदेश, राजपत्र, अधिसूचना, अनुस्मारक, प्रेस विज्ञप्ति निविदा, अपील, निलामी, पत्र-पावती आदि में यह बहुत आसानी से प्रयोग की जा रही है। इतना ही नहीं, भारत देश के संपूर्ण तीर्थ स्थलों, पर्यटन स्थलों में तो इसके शिष्ट रूप का प्रयोग हो रहा है साथ ही साथ इसने आज बाजार और औद्योगिकता के दबाब के कारण गाँव के हाट-बाजार गली-चौराहे, कल-कारखाने, कचहरी और सब्जी मंडियों में भी अपने आगमन की सूचना और पुकार दे दी है।

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