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Dunia ke shabd

By: Material type: TextTextPublication details: New Delhi Anamika Publishers and distributers 2022Edition: 1st edDescription: 311 pISBN:
  • 9789391524685
Subject(s): DDC classification:
  • H 891.43 DUN
Summary: दुनिया के शब्द की वैचारिक सामग्री, पिछले दो दशक में समयांतर में प्रकाशित लेखों का प्रतिफल है। यह सामग्री समय के साथ-साथ जिंदगी के बीच उठ रहे दबावों के तहत बनी-पढ़ी और विकसित हुई, उस काल के दौरान जब दुनिया के स्तर पर जागरूक रचनाकारों ने कलम के जरिये समस्याओं और सवालों के माहौल में मानीखेज दखलंदाजी की। कल्पना करें कि बीसवीं सदी व्यापक ऐतिहासिक विकास क्रम में दो विश्वयुद्धों की गवाह बनी थी जिसके परिणामस्वरूप देशों का भूगोल और सामाजिक घटनाक्रम निर्णायक तरीके से बदला था। उससे पैदा हुई समस्याएं विकट थीं और महत्वपूर्ण बात यह थी कि दुनिया के एक बड़े हिस्से में समाजवाद के कदम पड़े थे। पिछले वक्त का अकेला समाजवादी देश सोवियत रूस दूसरे विश्वयुद्ध के बाद बड़ी संख्या में उभरे नए समाजवादी देशों के कारण अतिरिक्त शक्तिशाली हो गया था। लगभग उसी अनुपात में पूंजीवादी समाजों की चिंताएं भी बढ़ गई थीं। जाहिर है, यह घटनाक्रम नए सांस्कृतिक और विचारधारात्मक सवालों का सबब बन कर सामने आया था और उन्हें झेल कर लिखा जाने वाला साहित्य इस नई स्थिति में बिल्कुल अलग तरह का हो गया था। तब यह जरूरत पैदा हुई थी कि चिंतन, विश्लेषण और टिप्पणी करने के नए तरीके ईजाद किए जाएं। इसके मद्देनजर हमारी अनेक पत्रिकाओं ने सोच के नये बयान पाठकों से साझा करने शुरू किये, ताकि साहित्य की समझदारी में इजाफा हो सके। खास तौर पर हिंदी में इन बयानों की कद्र बढ़ते देखकर कितने ही लेखकों और संपादकों ने उन्हें अपने विचारों और पृष्ठों में जगह देनी शुरू की।
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दुनिया के शब्द की वैचारिक सामग्री, पिछले दो दशक में समयांतर में प्रकाशित लेखों का प्रतिफल है। यह सामग्री समय के साथ-साथ जिंदगी के बीच उठ रहे दबावों के तहत बनी-पढ़ी और विकसित हुई, उस काल के दौरान जब दुनिया के स्तर पर जागरूक रचनाकारों ने कलम के जरिये समस्याओं और सवालों के माहौल में मानीखेज दखलंदाजी की। कल्पना करें कि बीसवीं सदी व्यापक ऐतिहासिक विकास क्रम में दो विश्वयुद्धों की गवाह बनी थी जिसके परिणामस्वरूप देशों का भूगोल और सामाजिक घटनाक्रम निर्णायक तरीके से बदला था।

उससे पैदा हुई समस्याएं विकट थीं और महत्वपूर्ण बात यह थी कि दुनिया के एक बड़े हिस्से में समाजवाद के कदम पड़े थे। पिछले वक्त का अकेला समाजवादी देश सोवियत रूस दूसरे विश्वयुद्ध के बाद बड़ी संख्या में उभरे नए समाजवादी देशों के कारण अतिरिक्त शक्तिशाली हो गया था। लगभग उसी अनुपात में पूंजीवादी समाजों की चिंताएं भी बढ़ गई थीं। जाहिर है, यह घटनाक्रम नए सांस्कृतिक और विचारधारात्मक सवालों का सबब बन कर सामने आया था और उन्हें झेल कर लिखा जाने वाला साहित्य इस नई स्थिति में बिल्कुल अलग तरह का हो गया था। तब यह जरूरत पैदा हुई थी कि चिंतन, विश्लेषण और टिप्पणी करने के नए तरीके ईजाद किए जाएं। इसके मद्देनजर हमारी अनेक पत्रिकाओं ने सोच के नये बयान पाठकों से साझा करने शुरू किये, ताकि साहित्य की समझदारी में इजाफा हो सके। खास तौर पर हिंदी में इन बयानों की कद्र बढ़ते देखकर कितने ही लेखकों और संपादकों ने उन्हें अपने विचारों और पृष्ठों में जगह देनी शुरू की।

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