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Bharat men prathmik siksha: shesh samkalp (Elementary education in India: a promise to keep)

By: Contributor(s): Material type: TextTextPublication details: Bikaner Vagdevi 2020Description: 96 pISBN:
  • 9788185127767
Subject(s): DDC classification:
  • H 372.954 NAI
Summary: भारत को अभी सर्वव्यापी प्रारंभिक शिक्षा का राष्ट्रीय संकल्प पूरा करना शेष है। प्रस्तुत अध्ययन अत्यन्त शिद्दत के साथ यह एहसास कराता है कि विगत सौ वर्षों के अपने इस राष्ट्रीय लक्ष्य को हासिल करने तथा जनता को दिये गए वचन को पूरा कर दिखाने के लिए हमें कैसे सामूहिक सोच, पक्के इरादे और इन्हें अमल में लाने के लिए कैसे सघन प्रयासों की जरूरत पड़ेगी। सुविख्यात शिक्षाविद् और विचारक प्रो. जे.पी. नाईक ने अपनी इस समीक्षापरक पुस्तक में भारत में सर्वव्यापी प्राथमिक शिक्षा की दिशा में अतीत में किये गए प्रयासों की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि देते हुए उनकी विशेषताओं और असफलताओं के कारणों का विश्लेषण किया है तथा प्राथमिक शिक्षा के परंपरागत प्रतिमानों से हटकर समय-समय पर संशोधन के लिए आजमाये गए अभिनव विकल्पों और वैकल्पिक कार्यनीतियों का सटीक विवेचन किया है। पुस्तक में जहाँ अंग्रेजों की प्रचलित आधुनिक शिक्षा प्रणाली में बुनियादी संरचनात्मक परिवर्तन लाने के लिए गोखले, पारुलेकर, महात्मा गांधी, आचार्य विनोबा भावे और सी. राजगोपालाचारी जैसे मनीषियों के शैक्षिक प्रयोगों का वर्णन हैं, वहीं उन्हें असफल बनाने वाले कारकों की भी चर्चा है। विद्वान लेखक ने शिक्षा आयोग 1964-66 की महत्त्वपूर्ण सिफारिशों पड़ोस स्कूल अवधारणा, पाठ्यक्रम में क्रांतिकारी रूपान्तरण, बहुल प्रवेश और अंशकालिक पाठ्यक्रम का भी वर्णन किया है ताकि पूरे देश के लिए एक ही प्रणाली हो ऐसी प्रणाली, जो विशिष्ट वर्ग और जनसाधारण दोनों की जरूरतें पूरी करे। 'कार्यक्रम की रूपरेखा' शीर्षक अध्याय तो प्राथमिक शिक्षा की एक उत्तम प्रणाली विकसित करने की दृष्टि से योजनाकारों को चिंतन का बहुमूल्य फलक प्रदान करता है। इसके परिप्रेक्ष्य में सर्वव्यापी प्राथमिक शिक्षा का एक दीर्घकालिक कार्यकारी आधार-पटल बना पाना सहज ही संभव होगा। इस नाते प्राथमिक शिक्षा से सम्बद्ध कार्मिकों के लिए यह पुस्तक मनोयोगपूर्वक पठनीय-मननीय है।
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भारत को अभी सर्वव्यापी प्रारंभिक शिक्षा का राष्ट्रीय संकल्प पूरा करना शेष है। प्रस्तुत अध्ययन अत्यन्त शिद्दत के साथ यह एहसास कराता है कि विगत सौ वर्षों के अपने इस राष्ट्रीय लक्ष्य को हासिल करने तथा जनता को दिये गए वचन को पूरा कर दिखाने के लिए हमें कैसे सामूहिक सोच, पक्के इरादे और इन्हें अमल में लाने के लिए कैसे सघन प्रयासों की जरूरत पड़ेगी।
सुविख्यात शिक्षाविद् और विचारक प्रो. जे.पी. नाईक ने अपनी इस समीक्षापरक पुस्तक में भारत में सर्वव्यापी प्राथमिक शिक्षा की दिशा में अतीत में किये गए प्रयासों की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि देते हुए उनकी विशेषताओं और असफलताओं के कारणों का विश्लेषण किया है तथा प्राथमिक शिक्षा के परंपरागत प्रतिमानों से हटकर समय-समय पर संशोधन के लिए आजमाये गए अभिनव विकल्पों और वैकल्पिक कार्यनीतियों का सटीक विवेचन किया है।
पुस्तक में जहाँ अंग्रेजों की प्रचलित आधुनिक शिक्षा प्रणाली में बुनियादी संरचनात्मक परिवर्तन लाने के लिए गोखले, पारुलेकर, महात्मा गांधी, आचार्य विनोबा भावे और सी. राजगोपालाचारी जैसे मनीषियों के शैक्षिक प्रयोगों का वर्णन हैं, वहीं उन्हें असफल बनाने वाले कारकों की भी चर्चा है। विद्वान लेखक ने शिक्षा आयोग 1964-66 की महत्त्वपूर्ण सिफारिशों पड़ोस स्कूल अवधारणा, पाठ्यक्रम में क्रांतिकारी रूपान्तरण, बहुल प्रवेश और अंशकालिक पाठ्यक्रम का भी वर्णन किया है ताकि पूरे देश के लिए एक ही प्रणाली हो ऐसी प्रणाली, जो विशिष्ट वर्ग और जनसाधारण दोनों की जरूरतें पूरी करे।
'कार्यक्रम की रूपरेखा' शीर्षक अध्याय तो प्राथमिक शिक्षा की एक उत्तम प्रणाली विकसित करने की दृष्टि से योजनाकारों को चिंतन का बहुमूल्य फलक प्रदान करता है। इसके परिप्रेक्ष्य में सर्वव्यापी प्राथमिक शिक्षा का एक दीर्घकालिक कार्यकारी आधार-पटल बना पाना सहज ही संभव होगा। इस नाते प्राथमिक शिक्षा से सम्बद्ध कार्मिकों के लिए यह पुस्तक मनोयोगपूर्वक पठनीय-मननीय है।

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