Yashpal ka viplav - II
Material type:
- 9789389742480
- H 320.954035 YAS
Item type | Current library | Call number | Status | Date due | Barcode | Item holds |
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Gandhi Smriti Library | H 320.954035 YAS (Browse shelf(Opens below)) | Available | 168119 |
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H 320.954 TRI Bhartiya rajniti me garampanth ki chunoti :1890 se 1910 ke beech ka bharat / tr. by Naval kishor Prasad Singh | H 320.954 TYA Belag bebak | H 320.954 YAD Bhartiya shasan evam rajniti | H 320.954035 YAS Yashpal ka viplav - II | H 320.954123 MIT Ruktapur | H 320.95496 POO Rajtantriya Nepal me prajatantrik aandolan evam rajnitik vikas | H 321 Bhartiya rajnitik vyavstha |
वह स्वराज्य कैसा होगा?...अट्ठानबे फ़ीसदी के लिए तो स्वाधीनता का केवल एक अर्थ है-ज़िन्दा रहने का अधिकार। और ज़िन्दा रहने का मतलब है, पेट में रोटी और तन पर कपड़ा। इस पेट में रोटी और तन पर कपड़े की बात भी ज़रा स्वराज्य में स्पष्ट हो जाय तो अच्छा है...अगर यह कहते डर लगता है कि ज़मीन उसी की होगी जो उसे जोते बोयेगा या कारखाने, मिलें उन्हीं की होंगी जो इन्हें अपने परिश्रम से बनाकर खड़ा करेंगे, तो इतना तो कह दीजिये कि ज़मीन जोत कर अन्न पैदा करनेवाले को लगान और मालगुजारी में सर्वस्व स्वाहा कर देने से पहले कम-से-कम पेट भरने लायक रखने का अधिकार होगा।... आज भी क्या समय नहीं आया कि सभी राष्ट्रीय संगठन जीवन के अधिकार का कम-से-कम एक दर्जा तो इस देश के शोषितों के लिए मंजूर किये जाने की आवाज़ उठायें?
अपनी वामपन्थी, जनपक्षधर सोच के चलते यशपाल बिना किसी एक धड़े या गुट का अनुगामी हुए अपनी राय बेबाकी से 'विप्लव' के पृष्ठों पर अभिव्यक्त करते रहते थे।
'विप्लव' के सम्पादकीय इन अर्थों में दस्तावेज़ी महत्त्व रखते हैं कि वे उस दौर के राजनीतिक घटनाक्रमों को ही नहीं बल्कि इतिहास निर्माण की उस प्रक्रिया को भी उद्घाटित करते हैं जिसे राजनीतिक इतिहास की मुख्यधारा से प्रायः नहीं समझा जा सकता।
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