Amazon cover image
Image from Amazon.com
Image from Google Jackets

Yashpal ka viplav - II

By: Contributor(s): Material type: TextTextPublication details: Prayagraj Lokbharati Prakashan 2021Edition: 1st edDescription: 384 pISBN:
  • 9789389742480
Subject(s): DDC classification:
  • H 320.954035 YAS
Summary: वह स्वराज्य कैसा होगा?...अट्ठानबे फ़ीसदी के लिए तो स्वाधीनता का केवल एक अर्थ है-ज़िन्दा रहने का अधिकार। और ज़िन्दा रहने का मतलब है, पेट में रोटी और तन पर कपड़ा। इस पेट में रोटी और तन पर कपड़े की बात भी ज़रा स्वराज्य में स्पष्ट हो जाय तो अच्छा है...अगर यह कहते डर लगता है कि ज़मीन उसी की होगी जो उसे जोते बोयेगा या कारखाने, मिलें उन्हीं की होंगी जो इन्हें अपने परिश्रम से बनाकर खड़ा करेंगे, तो इतना तो कह दीजिये कि ज़मीन जोत कर अन्न पैदा करनेवाले को लगान और मालगुजारी में सर्वस्व स्वाहा कर देने से पहले कम-से-कम पेट भरने लायक रखने का अधिकार होगा।... आज भी क्या समय नहीं आया कि सभी राष्ट्रीय संगठन जीवन के अधिकार का कम-से-कम एक दर्जा तो इस देश के शोषितों के लिए मंजूर किये जाने की आवाज़ उठायें? अपनी वामपन्थी, जनपक्षधर सोच के चलते यशपाल बिना किसी एक धड़े या गुट का अनुगामी हुए अपनी राय बेबाकी से 'विप्लव' के पृष्ठों पर अभिव्यक्त करते रहते थे। 'विप्लव' के सम्पादकीय इन अर्थों में दस्तावेज़ी महत्त्व रखते हैं कि वे उस दौर के राजनीतिक घटनाक्रमों को ही नहीं बल्कि इतिहास निर्माण की उस प्रक्रिया को भी उद्घाटित करते हैं जिसे राजनीतिक इतिहास की मुख्यधारा से प्रायः नहीं समझा जा सकता।
Tags from this library: No tags from this library for this title. Log in to add tags.
Star ratings
    Average rating: 0.0 (0 votes)

वह स्वराज्य कैसा होगा?...अट्ठानबे फ़ीसदी के लिए तो स्वाधीनता का केवल एक अर्थ है-ज़िन्दा रहने का अधिकार। और ज़िन्दा रहने का मतलब है, पेट में रोटी और तन पर कपड़ा। इस पेट में रोटी और तन पर कपड़े की बात भी ज़रा स्वराज्य में स्पष्ट हो जाय तो अच्छा है...अगर यह कहते डर लगता है कि ज़मीन उसी की होगी जो उसे जोते बोयेगा या कारखाने, मिलें उन्हीं की होंगी जो इन्हें अपने परिश्रम से बनाकर खड़ा करेंगे, तो इतना तो कह दीजिये कि ज़मीन जोत कर अन्न पैदा करनेवाले को लगान और मालगुजारी में सर्वस्व स्वाहा कर देने से पहले कम-से-कम पेट भरने लायक रखने का अधिकार होगा।... आज भी क्या समय नहीं आया कि सभी राष्ट्रीय संगठन जीवन के अधिकार का कम-से-कम एक दर्जा तो इस देश के शोषितों के लिए मंजूर किये जाने की आवाज़ उठायें?

अपनी वामपन्थी, जनपक्षधर सोच के चलते यशपाल बिना किसी एक धड़े या गुट का अनुगामी हुए अपनी राय बेबाकी से 'विप्लव' के पृष्ठों पर अभिव्यक्त करते रहते थे।

'विप्लव' के सम्पादकीय इन अर्थों में दस्तावेज़ी महत्त्व रखते हैं कि वे उस दौर के राजनीतिक घटनाक्रमों को ही नहीं बल्कि इतिहास निर्माण की उस प्रक्रिया को भी उद्घाटित करते हैं जिसे राजनीतिक इतिहास की मुख्यधारा से प्रायः नहीं समझा जा सकता।

There are no comments on this title.

to post a comment.

Powered by Koha