Amazon cover image
Image from Amazon.com
Image from Google Jackets

Hamesha der kar deta hoon main

By: Material type: TextTextPublication details: Delhi Rajpaal 2021.Description: 192 pISBN:
  • 9788195297535
Subject(s): DDC classification:
  • H SUB P
Summary: आज जब बीसवीं सदी के अनुभव इक्कीसवीं सदी के यथार्थ से टकरा रहे हैं, तो समाज में बहुत से सवाल और संघर्ष खड़े हो रहे हैं। ऐसे ही कुछ सवाल हमेशा देर कर देता हूं मैं में पंकज सुबीर पूछते हैं और उभरते संघर्षों को संवेदना के धागों में पिरो कर पाठक के सम्मुख रखते हैं। इन कहानियों में जहाँ एक तरफ़ वे रूढ़िवाद, कट्टरता, स्टीरियोटाइपिंग जैसी समाज विरोधी प्रवृत्तियों से टकराते हैं, वहीं दूसरी तरफ़ अपने भीतर के लेखक मन की विभिन्न परतों की भी निरंतर जाँच करते हंै। लेखक के रचनाकर्म पर यदि नज़र डालें तो यह बात साफ़ समझ में आती है कि उनकी कहानियों में हमारे समय का यथार्थ अंकित ही नहीं होता; बल्कि इसका व्यापक परिवेश अपने पूरे विस्तार में उपस्थित होता है। हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में पंकज सुबीर सुपरिचित नाम है। उनके अब तक तीन उपन्यास, सात कहानी-संग्रह, दो ग़ज़ल-संग्रह और एक यात्रा-वृत्तांत प्रकाशित हो चुके हैं। इसके अलावा उन्होंने कई महत्त्वपूर्ण पुस्तकों का संपादन भी किया है।
Tags from this library: No tags from this library for this title. Log in to add tags.
Star ratings
    Average rating: 0.0 (0 votes)

आज जब बीसवीं सदी के अनुभव इक्कीसवीं सदी के यथार्थ से टकरा रहे हैं, तो समाज में बहुत से सवाल और संघर्ष खड़े हो रहे हैं। ऐसे ही कुछ सवाल हमेशा देर कर देता हूं मैं में पंकज सुबीर पूछते हैं और उभरते संघर्षों को संवेदना के धागों में पिरो कर पाठक के सम्मुख रखते हैं। इन कहानियों में जहाँ एक तरफ़ वे रूढ़िवाद, कट्टरता, स्टीरियोटाइपिंग जैसी समाज विरोधी प्रवृत्तियों से टकराते हैं, वहीं दूसरी तरफ़ अपने भीतर के लेखक मन की विभिन्न परतों की भी निरंतर जाँच करते हंै। लेखक के रचनाकर्म पर यदि नज़र डालें तो यह बात साफ़ समझ में आती है कि उनकी कहानियों में हमारे समय का यथार्थ अंकित ही नहीं होता; बल्कि इसका व्यापक परिवेश अपने पूरे विस्तार में उपस्थित होता है। हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में पंकज सुबीर सुपरिचित नाम है। उनके अब तक तीन उपन्यास, सात कहानी-संग्रह, दो ग़ज़ल-संग्रह और एक यात्रा-वृत्तांत प्रकाशित हो चुके हैं। इसके अलावा उन्होंने कई महत्त्वपूर्ण पुस्तकों का संपादन भी किया है।

There are no comments on this title.

to post a comment.

Powered by Koha