Akhiri din
Material type:
- 8185127360
- H SHA R
Item type | Current library | Call number | Status | Date due | Barcode | Item holds |
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Gandhi Smriti Library | H SHA R (Browse shelf(Opens below)) | Available | 168067 |
.....यह वह मौत नहीं है जिसका एक दिन मुअय्यन होता था। यह वह मृत्यु है जो नितांत अकारण और अनर्गल है, जिसका मेरी नियति या मेरे कर्मों से, किसी रोग-शोक से भी कुछ लेना-देना नहीं। यह मेरी नहीं, मेरी नियति की मौत है— नियति मात्र की हत्या.......
..... अजब करामाती है यह कोठरी। जैसे कोई पम्प लेकर बाहर बैठा हो—कोई आधा जल्लाद, आधा खिल्लाड़ तबीयत का आदमी, और.... कभी तो पूरी हवा कोठरी की बाहर खींचे ले रहा हो और कभी चुपके से थोड़ी सी वापस भीतर आ जाने दे रहा हो।....'
.....तो ? तो क्या मैं उनके लिए रो रहा हूँ उनके लिए, जिन्होंने मुझे पाँच दिन पाँच रात तड़पाया....मुझे पैरों तले रौंदा, कोड़ों से छलनी किया, मुँह पर थूका बारी-बारी से....?'
'.... चलो कितना अच्छा हुआ कि खबर नहीं बना मैं। खबर बन जाता तो मेरी बीवी और बच्चों पर क्या गुजरती ! वे तो सपने में भी नहीं सोच सकते कि मेरे साथ इस बीच कितना कुछ घट गया....'
'.... हाँ, मेरी अक्ल पर जो पत्थर पड़ा था, वह थोड़ा सरका तो सही।.....
यह है इस उपन्यास का नायक और सूत्रधार इंद्रजीत मलहोत्रा जो किस्से-कहानियों का 'होलटाइमर' बनने की लालसा में 'झोला टाँगकर' घर से निकल पड़ा था और इस चक्कर में आतंकवादियों के हाथ पड़कर खुद ही एक किस्सा बन गया था। किस्सा, जो जितना दिलचस्प है, उतना ही दारुण भी। दिलचस्प इसलिए, कि इन्द्रजीत मलहोत्रा को अपने पर और अपनी स्थितियों पर हँसना आता है और दारुण इसलिए, कि वह किस्सा नहीं, हकीक़त है -जिसे और किसी तरह बयान करना मुश्किल है। इस इंद्रजीत मलहोत्रा से हम पिंड नहीं छुड़ा सकते क्योंकि वह हम सबके घर में बैठा हुआ है। हममें से हर कोई मलहोत्रा है; अपनी विशिष्टता में ही सामान्य और अपनी सामान्यता में ही विशिष्ट ।
'गोबरगणेश', 'किस्सा गुलाम' और 'पूर्वापर' जैसे बहुचर्चित उपन्यासों के बाद रमेशचन्द्र शाह की यह नई कथाकृति हमारे इस आतंकवादी समय और परिवेश की जिस जीवन्त अन्तर्कथा को प्रस्तुत करती है, उससे कोई भी सजग पाठक भीतर तक संवेदित और आंदोलित हुए बिना नहीं रह सकता।
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