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Dhoomil Samgra

By: Material type: TextTextPublication details: New Delhi Rajkamal 2021Description: 320 pISBN:
  • 9789389598865
Subject(s): DDC classification:
  • H 891.43171 DHO V.3
Summary: धूमिल समग्र के इस तीसरे खंड में संकलित सामग्री को पढ़ना धूमिल को समझने के लिए। सबसे जरूरी है। इसमें उनकी डायरी और पत्रों को रखा गया है। डायरी से उनकी राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक संलग्नता प्रकट होती है। कहीं-कहीं दीखता है कि एक ही तरह की दिनचर्या कई दिनों तक चल रही हैं, लेकिन उसी के भीतर से उनकी सघन सक्रियता का भी बोध होता है। फरवरी 1969 का एक पन्ना है: 'मैं महसूस करने लगा हूँ कि कविता आदमी को कुछ नहीं देगी, सिवा उस तनाव के जो बातचीत के दौरान दो चेहरों के बीच तन जाता है। इन दिनों एक खतरा और बढ़ गया है कि ज्यादातर लोग कविता को चमत्कार के आगे समझाने लगे हैं। इस स्थिति में सहज होना जितना कठिन है, सामान्य होने का खतरा उतना ही, बल्कि उससे कहीं ज्यादा है।' उसके थोड़ा आगे तरह की कुछ पंक्तियाँ हैं: आलोचक/ वह तुम्हारी कविता का सूचता है/और/नाक की सीध में तिजोरियों की और दौड़ा चला जाता है।" से अपनी डायरी में इसी तरह कहीं अपनी प्रतिक्रियाएँ और कहीं विचार टाँकते रहते थे। जाहिर। डायरी उन्होंने साहि के तौर पर नहीं, अपनी भावनात्मक और वैचारिक नियों को करने के लिए लिखी थी। इसमें पता चलता है कि कहीं-कहीं उनकी विचार-विध की तरह चलने लगती थी और कहीं सिर्फ एक-दी वाक्यों में अपनी पूरी बात कह देते थे। अपनी कविताओं और छपी हुई चीजों की तरह पत्र भी उन्होंने बहुत संभालकर नहीं रखें। पांडुलिपियों में कुल 61 पत्र प्राप्त हुए जिन्हें यहाँ दिया गया है। डायरी की तरह इनमें भी सम-सामयिक विषयों पर स्फुट विचार हैं।
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H 891.43171 AHA V.2 C.1 Dr. Ambedkar mahakavya (set of 2 Vols) H 891.43171 DHO V. 1 Dhoomil Samgra H 891.43171 DHO V.2 Dhoomil Samgra H 891.43171 DHO V.3 Dhoomil Samgra H 891.43171 FAA Kagaz ki kashti H 891.43171 MAD Sri Shyam charit manas H 891.43171 VAL Shabd jhoot nahi bolte

Volume 3
डायरी, पत्र

धूमिल समग्र के इस तीसरे खंड में संकलित सामग्री को पढ़ना धूमिल को समझने के लिए। सबसे जरूरी है। इसमें उनकी डायरी और पत्रों को रखा गया है। डायरी से उनकी राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक संलग्नता प्रकट होती है। कहीं-कहीं दीखता है कि एक ही तरह की दिनचर्या कई दिनों तक चल रही हैं, लेकिन उसी के भीतर से उनकी सघन सक्रियता का भी बोध होता है।

फरवरी 1969 का एक पन्ना है: 'मैं महसूस करने लगा हूँ कि कविता आदमी को कुछ नहीं देगी, सिवा उस तनाव के जो बातचीत के दौरान दो चेहरों के बीच तन जाता है। इन दिनों एक खतरा और बढ़ गया है कि ज्यादातर लोग कविता को चमत्कार के आगे समझाने लगे हैं। इस स्थिति में सहज होना जितना कठिन है, सामान्य होने का खतरा उतना ही, बल्कि उससे कहीं ज्यादा है।' उसके थोड़ा आगे तरह की कुछ पंक्तियाँ हैं: आलोचक/ वह तुम्हारी कविता का सूचता है/और/नाक की सीध में तिजोरियों की और दौड़ा चला जाता है।"

से अपनी डायरी में इसी तरह कहीं अपनी प्रतिक्रियाएँ और कहीं विचार टाँकते रहते थे। जाहिर। डायरी उन्होंने साहि के तौर पर नहीं, अपनी भावनात्मक और वैचारिक नियों को करने के लिए लिखी थी। इसमें पता चलता है कि कहीं-कहीं उनकी विचार-विध की तरह चलने लगती थी और कहीं सिर्फ एक-दी वाक्यों में अपनी पूरी बात कह देते थे।

अपनी कविताओं और छपी हुई चीजों की तरह पत्र भी उन्होंने बहुत संभालकर नहीं रखें। पांडुलिपियों में कुल 61 पत्र प्राप्त हुए जिन्हें यहाँ दिया गया है। डायरी की तरह इनमें भी सम-सामयिक विषयों पर स्फुट विचार हैं।

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