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Samajasastra : artha evaṃ upagama

By: Material type: TextTextPublication details: Bengaluru Azim premji university 2021Description: 328 pISBN:
  • 9788131610428
Subject(s): DDC classification:
  • H 301 BHA
Summary: समाज विज्ञान की एक प्रमुख विधा के रूप में समाजशास्त्र का अपना विशिष्ट महत्व है। मानव जिस समाज में रहता है, उस समाज में मानवीय संबंधों, क्रियाकलापों, प्रक्रियाओं, मानवीय व्यवहार, आचार-विचार आदि के कई ऐसे संदर्भ हैं, जिन्हें वैज्ञानिक आधार पर समझना आवश्यक है। सैद्धांतिक तौर पर इन्हीं संदर्भों को समाजशास्त्र का सैद्धांतिक अभिप्राय समझा जा सकता है। प्रस्तुत संकलन समाजशास्त्र के कतिपय ऐसे ही संदर्भों को सूक्ष्म रूप से समझने का प्रयास है। इस संकलन में समाजशास्त्र के कुछ मूलभूत पक्षों को सम्मिलित किया गया है जिसमें जहाँ एक ओर समाजशास्त्र का अर्थ है तो दूसरी ओर समाजशास्त्र के मूलभूत अध्येताओं और उनकी सैद्धांतिक व्याख्याओं को सम्मिलित किया गया है। किसी भी शास्त्र के स्पष्टीकरण तथा विश्लेषण की अपनी भाषा है। यह भाषा उन शब्दों से बनती है, जो उस शास्त्र के संकेत शब्द हैं। ये संकेत शब्द परिभाषित किए जाते हैं और इन्हीं परिभाषाओं के आधार पर समाजशास्त्रीय विश्लेषण किया जाता है। समाजशास्त्रीय भाषा में प्रयुक्त संकल्पनाओं को भी इस संकलन में सम्मिलित किया गया है। तीन खंडों में विभाजित इस संकलन के सभी 16 आलेखों को हिंदी के प्रसिद्ध लेखकों द्वारा लिखा गया है, जो सहज तथा सरल शब्दों में समाजशास्त्र पर अपनी विवेचनाएँ प्रस्तुत करते रहे हैं। आशा है यह संकलन पाठकों और विद्यार्थियों को समाजशास्त्र की समझ विकसित करने में सहायक होगा।
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समाज विज्ञान की एक प्रमुख विधा के रूप में समाजशास्त्र का अपना विशिष्ट महत्व है। मानव जिस समाज में रहता है, उस समाज में मानवीय संबंधों, क्रियाकलापों, प्रक्रियाओं, मानवीय व्यवहार, आचार-विचार आदि के कई ऐसे संदर्भ हैं, जिन्हें वैज्ञानिक आधार पर समझना आवश्यक है। सैद्धांतिक तौर पर इन्हीं संदर्भों को समाजशास्त्र का सैद्धांतिक अभिप्राय समझा जा सकता है। प्रस्तुत संकलन समाजशास्त्र के कतिपय ऐसे ही संदर्भों को सूक्ष्म रूप से समझने का प्रयास है। इस संकलन में समाजशास्त्र के कुछ मूलभूत पक्षों को सम्मिलित किया गया है जिसमें जहाँ एक ओर समाजशास्त्र का अर्थ है तो दूसरी ओर समाजशास्त्र के मूलभूत अध्येताओं और उनकी सैद्धांतिक व्याख्याओं को सम्मिलित किया गया है। किसी भी शास्त्र के स्पष्टीकरण तथा विश्लेषण की अपनी भाषा है। यह भाषा उन शब्दों से बनती है, जो उस शास्त्र के संकेत शब्द हैं। ये संकेत शब्द परिभाषित किए जाते हैं और इन्हीं परिभाषाओं के आधार पर समाजशास्त्रीय विश्लेषण किया जाता है। समाजशास्त्रीय भाषा में प्रयुक्त संकल्पनाओं को भी इस संकलन में सम्मिलित किया गया है। तीन खंडों में विभाजित इस संकलन के सभी 16 आलेखों को हिंदी के प्रसिद्ध लेखकों द्वारा लिखा गया है, जो सहज तथा सरल शब्दों में समाजशास्त्र पर अपनी विवेचनाएँ प्रस्तुत करते रहे हैं। आशा है यह संकलन पाठकों और विद्यार्थियों को समाजशास्त्र की समझ विकसित करने में सहायक होगा।

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