Speeti men barish: laahul speeti ke jeevan ka yatra anveshan
Material type:
- 9788185127835
- H NAT K
Item type | Current library | Call number | Status | Date due | Barcode | Item holds |
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Gandhi Smriti Library | H NAT K (Browse shelf(Opens below)) | Available | 168074 |
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.... हम काजा के डाक बंगले में सो रहे थे तो लगा कि कोई खिड़की खड़का रहा है।
आधी रात का भी पिछला पहर है। इस समय कौन है? लैम्प की लौ तेज की खिड़की का एक पल्ला खोला तो तेज हवा का झोंका मुँह और हाथ को जैसे छीलने लगा। मैंने पल्ला भीड़ दिया। उसकी आड़ से देखने लगा। देखा कि बारिश हो रही थी। मैं उसे देख नहीं रहा था, सुन रहा था। अँधेरा, ठण्ड.... और हवा का झोंका आ रहा था। जैसे बर्फ़ का अंश लिये तुषार जैसी बूँदें पड़ रही थीं। जैसे नगाड़े पर थाप पड़ रही थी। दुंगछेन को हवा बजा रही थी। महाशंख की ध्वनि घाटी में तैर रही थी। स्पीति की घाटी में वर्षा हो रही थी......
सुबह उठा। चाय पीते-पीते सुना कि स्पीति के लोग कह रहे हैं कि हमारी यात्रा शुभ है। स्पीति में बहुत दिनों बाद बारिश हुई है।
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