Kewal ek patti ne
Material type:
- 9789380441061
- H 891.43171 ACH
Item type | Current library | Call number | Status | Date due | Barcode | Item holds |
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Gandhi Smriti Library | H 891.43171 ACH (Browse shelf(Opens below)) | Available | 168073 |
कुछ कवि एक बार अपनी ज़मीन पहचान लेने पर उस के कण-कण में धँसते और रस निस्सृत करते रहते हैं। ऐसा करते हुए वे उसी जगह से जाने कितनी छूटी और अन पहचानी छवियों से हमें परिचित करवाते हैं। नन्दकिशोर आचार्य हमारे समय के एक ऐसे ही कवि हैं। उन्होंने 'लोकेल' और 'लोकेशन' पर बराबर ज़ोर देते हुए दोनों को एक किया है, जो एक साथ ही उन की कविता के संगठन को केन्द्रीयता और विस्तार देता है। उन के बीच साँस लेती उन की धरती, जलती-घुलती वनस्पति, उन को देखता-समझता जीवन, खिरता घर, गिरती खँख उन की कविता की स्थायी थीम बनते हैं और उन को देखने की कवि की निजी दृष्टि उन से मिल कर उन की कविता की धुरी और वितान रचती है। धुरी बाह्य परिदृश्य है तो वितान आत्म है। सामान्यतः, कवि अन्दर से बाहर की ओर जाता है; किन्तु, नन्दकिशोर आचार्य बाहर से भीतर की ओर आते हैं। इस लिए उन की कविता वर्णन के विस्तार के बंजाय अनुभूति की गहराई ग्रहण करती है, जिसे तत्काल न पकड़ पाने पर उस के घटित होने का निशान तक नहीं रह जायेगा और यदि चन्द शब्दों में उस की छोटी-सी अभिव्यक्ति को पूरी तरह से आचक्षु कर मन में न बिठाया गया तो लगेगा ही नहीं कि कभी ऐसी अभिव्यक्ति से गुज़रा भी गया है। कविता का वास्तविक 'लिरिकल टोन' यही तो होता है, जो ज़ाहिर करता है कि यदि यह कविता न होती तो हमारे जीवन का क्या खो गया होता!
नन्दकिशोर आचार्य जीवन के कवि हैं। वह पंचतत्त्वों की लय के कवि हैं। मृत्यु, प्रस्फुटन और जीवन देश, काल और गति तथा प्रेम, शब्द और सृजन के ऊपर से जुड़े विशाल वितान को एक अदनी-सी लगती अनुभूति की छुअन से तोड़ देते हैं। इसी से बनता है उन की प्रश्नाकुल कविताओं का द्वन्द्व दर्शन उल्लास में उदासी का, उदासी में अनेक सम्भावनाओं का उपस्थित में अनुपस्थित का, जीवन के तिर्यक् का और किसी चमत्कार के लिए नहीं जीवन के सम्भव सपने का। उसे पढ़ कर आप चमत्कृत हो जायें, यह अलग बात है।
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