Siksha mein nijikaraṇa ka prabhaw : ghoshaṇa patro ke sandarbh mein adhyayan
Material type:
- 9789388514637
- H 370.9544 VAS
Item type | Current library | Call number | Status | Date due | Barcode | Item holds |
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Gandhi Smriti Library | H 370.9544 VAS (Browse shelf(Opens below)) | Available | 168025 |
भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में जहां लोकतांत्रिक व्यवस्था को बनाए रखते हुए उसे सफलतम रूप से संचालित करने में हर मानवीय एवं भौतिक तत्व की आवश्यकता होती है वहीं इन आवश्यकताओं को पूरी करने का सशक्त माध्यम शिक्षा है। भारतीय शिक्षा पद्धति प्रजातन्त्र में आस्था रखने वाली है जो बहुदलीय राजनीतिक दलों को शासन संचालन में भागीदारी का अवसर प्रदान करती है। जैसी राज व्यवस्था होगी वैसी ही शिक्षा होगी और भारत में राज व्यवस्था प्राप्त करने के लिए राजनीतिक दलों के पास कई प्रमुख साधन है और इन साधनों में प्रमुख हैं 'घोषणा पत्र' ।
घोषणा पत्रों के माध्यम से राजनीतिक दल अपने दृष्टिकोण को शिक्षा सहित अन्य महत्वपूर्ण पक्षों सम्बन्धी विषयों पर व्यक्त करते हैं। इन्हीं घोषणाओं में विश्वास प्रकट करके नागरिक मतदान द्वारा एक विधिसम्मत लोकतांत्रिक व्यवस्था का निर्माण करते हैं और राजनीतिक दल भी इन घोषणा पत्रों की घोषणाओं को पूरी करने का प्रयास करते हैं।
21वीं सदी का भारत हर प्रकार से सक्षम है और हर उस प्रभाव से प्रभावित है जो विश्व में परिलक्षित होता है। आज का विश्व निजीकरण के प्रभाव से लबरेज है। सैद्धान्तिक आधार पर तथा ऐतिहासिक और तात्कालिक अनुभव के आईने में निजीकरण का बहुआयामी चेहरा दिखाने के अनेक प्रयास हुए है और हो रहे हैं। निजीकरण पर अंग्रेजी में इतना लिखा जा चुका है, गम्भीर अनुसन्धान, लोकप्रिय प्रचार तथा वाद-विवाद के स्तर पर कि शायद हमारी भाषा में इसका जवाब देने का प्रयास दसियों वर्षों तक दर्जनों लेखकों को उलझाये रख सकता है। परन्तु निजीकरण कई अर्थों में और सही-गलत कारणों से हमारे जमाने, समाज, लोक कल्याण, शिक्षा और विकास की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है। अतः अनेक स्तरों पर अलग-अलग रूचियों, हितों और मकसदों के लिए इस प्रश्न पर चर्चा और संवाद जारी रखना प्रबुद्ध नागरिकता और सचेतन रूप से भविष्य का सामना करने के लिए महती आवश्यकता है। निजीकरण के प्रभाव से कोई अछूता नहीं रहा।
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