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Janmadhyam saidhantiki model aur vichardhara

By: Contributor(s):
Material type: TextTextPublication details: Delhi Academic Publication 2021Description: 428pISBN:
  • 9789383931729
Subject(s): DDC classification:
  • H CHA J
Summary: जनमाध्यमों का सीधा संबंध हमारी आदतों और संस्कारों के निर्माण की प्रक्रिया से है। ये हमारी आदतों-संस्कारों को बनाते हैं। इनको पढ़ने समझने और विश्लेषित करने का सटीक तरीका है जनमाध्यमों की प्रकृति प्रस्तुति और प्रक्रियाओं का सैद्धांतिकी के आधार पर मूल्यांकन किया जाय। खासकर संचार मॉडलों और विचाराधारा के आधार पर विश्लेषण किया जाय। मीडिया मॉडलों और उसके विचारधारात्मक पहलुओं की मीमांसा करने के लिहाज से प्रस्तुत पुस्तक मीडिया अध्येताओं की मदद कर सकती है। हिंदी में सैद्धांतिकी और मीडिया मॉडल के पठन-पाठन की परंपरा का आरंभ सबसे पहले हम दोनों द्वारा लिखित 'जनमाध्यम सैद्धांतिकी पुस्तक से हुआ। अब यह पुस्तक नई सामग्री के साथ परिवर्दिधत संस्करण के रूप में आपके सामने है। मीडिया मूल्यांकन में जब कोई मॉडल अप्रासंगिक हो जाता है तो उसे बदल दिया जाता है। उसी तरह मीडिया के व्यवहार और नियम अप्रासंगिक हो जाते हैं तो बदल संस्कार, दिए जाते हैं। मीडिया अध्ययन-अध्यापन सबसे गतिशील क्षेत्र है। इसमें अपडेटिंग की बार-बार जरूरत होती है। क्योंकि मीडिया सीखने और व्यवहार में उतारने में दर्शक पाठक को तेजगति से मदद करता है। हमें पाठक श्रोता की प्रकृति, संस्कृति और सटीक राजनीतिक आर्थिक संदर्भ का ज्ञान होना चाहिए। मीडियम की प्रकृति, उदय और विकास की ऐतिहासिक परिस्थितियों का भी सही ज्ञान होना चाहिए। मीडिया के उपरोक्त पक्षों को समझने में प्रस्तुत पुस्तक मदद कर सकती है। मीडिया क्यों कहते हैं ? मासमीडिया क्यों कहते हैं ? जनसंचार संचार और मासकल्चर क्या है और यह किस तरह संप्रेषित होती है ? उसकी विचारधारा किस तरह निर्मित और संप्रेषित होती है ? इत्यादि सवालों पर विभिन्न दृष्टियों से प्रस्तुत पुस्तक में विचार किया गया है।
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Books Books Gandhi Smriti Library H CHA J (Browse shelf(Opens below)) Available 168007
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जनमाध्यमों का सीधा संबंध हमारी आदतों और संस्कारों के निर्माण की प्रक्रिया से है। ये हमारी आदतों-संस्कारों को बनाते हैं। इनको पढ़ने समझने और विश्लेषित करने का सटीक तरीका है जनमाध्यमों की प्रकृति प्रस्तुति और प्रक्रियाओं का सैद्धांतिकी के आधार पर मूल्यांकन किया जाय। खासकर संचार मॉडलों और विचाराधारा के आधार पर विश्लेषण किया जाय। मीडिया मॉडलों और उसके विचारधारात्मक पहलुओं की मीमांसा करने के लिहाज से प्रस्तुत पुस्तक मीडिया अध्येताओं की मदद कर सकती है। हिंदी में सैद्धांतिकी और मीडिया मॉडल के पठन-पाठन की परंपरा का आरंभ सबसे पहले हम दोनों द्वारा लिखित 'जनमाध्यम सैद्धांतिकी पुस्तक से हुआ। अब यह पुस्तक नई सामग्री के साथ परिवर्दिधत संस्करण के रूप में आपके सामने है।

मीडिया मूल्यांकन में जब कोई मॉडल अप्रासंगिक हो जाता है तो उसे बदल दिया जाता है। उसी तरह मीडिया के व्यवहार और नियम अप्रासंगिक हो जाते हैं तो बदल संस्कार, दिए जाते हैं। मीडिया अध्ययन-अध्यापन सबसे गतिशील क्षेत्र है। इसमें अपडेटिंग की बार-बार जरूरत होती है। क्योंकि मीडिया सीखने और व्यवहार में उतारने में दर्शक पाठक को तेजगति से मदद करता है। हमें पाठक श्रोता की प्रकृति, संस्कृति और सटीक राजनीतिक आर्थिक संदर्भ का ज्ञान होना चाहिए। मीडियम की

प्रकृति, उदय और विकास की ऐतिहासिक परिस्थितियों का भी सही ज्ञान होना चाहिए। मीडिया के उपरोक्त पक्षों को समझने में प्रस्तुत पुस्तक मदद कर सकती है। मीडिया क्यों कहते हैं ? मासमीडिया क्यों कहते हैं ? जनसंचार संचार और मासकल्चर क्या है और यह किस तरह संप्रेषित होती है ? उसकी विचारधारा किस तरह निर्मित और संप्रेषित होती है ? इत्यादि सवालों पर विभिन्न दृष्टियों से प्रस्तुत पुस्तक में विचार किया गया है।

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